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सूत्र
भावार्थ
* पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 400
ओरालिय सरीरं तत्र सोइंदियंपि भाणियन्त्रं, णवरं जस्स अत्थि सोइंदियं एवं चक्खिदियं घाणिदिय जिभिदिय फासिंदियाणिवि जाणियां, जस्त जं अस्थि ॥ १३ ॥ जीवे भंते! मणजोगेणिवत्तेमाणे किं अधिकरणी अधिकरणं एवं जहेव सोइंदियं तहेव णिरवसेसं ॥ वइजोगं एवं चेत्र, णवरं एर्गेदियवज्जाणं, एवं कायजोगेवि, वरं सव्व जीवाणं जाव वेमाणिए ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ सोलसमस्यस्स पढमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १६ ॥ १ ॥
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{करणी है और अधिकरण भी है. वगैरह उदारिक शरीर जैसे जानना. ऐसे ही जीन जिवों को श्रोत्रेन्द्रिय {हैं उन सब जीवों का पृथक दंडक से जानना. और जैसे श्रोत्रेन्द्रिय का कहा वैसे ही चक्षुइन्द्रिय. घ्राणेन्द्रिय ( रसनेन्द्रिय व स्पर्शेन्द्रिय का जानना ॥ १३ ॥ अहो भगवन् ! मनयोगी जीव क्या अधिकरणी है या अधिकरण है ? अहो गौतम ! मनयोगी जीव अधिकरणी है और अधिकरण भी है. जैसे श्रोत्रेन्द्रिय का कहा वैसे ही मनयोगी का जानना. एकेन्द्रिय वर्जकर सब वचन योगीवाले जीवों व सब काया { योगीवाले जीवों का भी वैसे ही जानना. ( एकेन्द्रिय में वचन योग नहीं है ) अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं यह सोलहवा शतक का पहिला उद्देशा संपूर्ण डुवा ॥ १० ॥ १ ॥
4. सोलहवा शतक का पहिला उद्देशा
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