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पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 4088
कइणं भंते ! इंदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचइंदिया पण्णत्ता, तंजहा-सोइंदिए जाव फासिदिए ॥ १० ॥ कइणं भंते ! जोए पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे जोए पण्णत्ते, तंजहा-मणजोए, वयजोए, कायजोए ॥ ११॥ जीवेणं भंते ओरालिय सरीरं
णिव्वत्तिएमाणे किं अधिकरणी अधिगरणं ? गोयमा ! अधिगरणी अधिगरणंपि ॥ __से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-अधिगरणीवि अधिगरणंपि ? गोयमा ! अविरतिं पडुच्च,
से तेणटेणं जाव अधिगरणंपि ॥ पुढवीकाइएणं भंते ! ओरालिय सरीरं णिवत्तिए इन्द्रियों कितनी कहीं ? अहो गौतम ! इन्द्रियों पांच कहीं. श्रोत्रेन्द्रिय, चाइन्द्रिय, प्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय
र स्पर्शेन्द्रिय ॥ १०॥ अहो भगवन् ! योग कितने कहे हैं ? अहो गौतम ! योग तीन कहे हैं. मन योग; वचन योग और काया योग ॥ ११ ॥ अहो भगवन् ! उदारिक शरीरवाला जीव को क्या , अधिकरणी है. या अधिकरण है ? अहो गौतम ! अधिकरणी भी है और आधिकरण भी है. अहो. भगवन् : किस कारन से ऐसा कहा गया है कि उदारिक शरीरवाला जीव अधिकरणी है और अधि-:* करण भी है ? अहो गौतम ! अविरति आश्री. इसलिये ऐसा कहा गया है कि उदारिक शरीरवाला जीव अधिकरणी है और अधिकरण भी है. ऐसे ही पृथ्वीकायादि पांच स्थावर तीन विकलेन्द्रिय,
सोलहवा शतक का पहिला
भावार्थ
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