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सूत्र
भावार्थ
48+ पंचमांग विवाह पण्णन्ति ( भगवती ) मूत्र +
माणि ॥ ५ ॥ जीवेणं भंते! किं साहिगरणी णिरहिगरणी ? गोयमा ! साहिगरणी णो णिरहिगरणी ॥ से केणट्टेणं पुच्छा ? गोयमा ! अविरतिं पडुच्च, से तट्टेणं जाव णो शिरधिगरणी ॥ एवं जात्र वेमाणि ॥ ६ ॥ जीवेणं भंते ! किं आयहिगरणी पराहिगरणी, तदुभयाहिगरणी ? गोयमा आयाहिगरणीवि, पराहिगरणी वि, तदुभयाहिगरणीचि ॥ से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ जात्र तदुभया हिगरणीवि ?
जीवों का यावत् वैमानिक पर्यंत जानना ॥५॥ अहो भगवन् ! जीव क्या अधिकरण सहित है या अधिकरण ( रहित है ? अहो गौतम ! जीव अधिकरण सहित है परंतु अधिकरण रहित नहीं है. अहो भगवन् किस कारन से जीव अधिकरण सहित है परंतु अधिकरण रहित नहीं है ? अहो गौतम ! अविरति आश्री वगैरह कारन से जीव अधिकरण सहित है. जैसे समुच्चय जीव का कहा वैसे ही वैमानिक पर्यंत चौबीस ही दंडक का जानना || ६ || अहां भगवन् ! क्या जीव स्वतः के अधिकरणवाला है. पर के अधिकरणवाला या उभय के अधिकरणवाला है ? अहो गौतम ! जीव स्वतः के अधिकरणवाला; अन्य के अधिकरणवाला व उभय के अधिकरणवाला है. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है यावत् उभय के अधिकरणवाला जीव है ? अहो गौतम ! अविरति आश्री इसलिये ऐसा कहा गया है.
4 सोलहवा शतक का पहिला उद्देशा
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