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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी 8
असी-णि बनीहा ई० अग्नि ई० अंगार नीकालने की लकडी भ. धमण णि बनीं ।
भी जी जीव का कायिकादि जा. यावत् पं० पांच कि. क्रियाओं से पु० स्पर्शा हुवा ॥ ३ ॥ पु० पुरुष भं. भगवन् अ० लोहाको अ. एरण में से अ० लोहमय सं० संडास से ग० लेकर अ० अधिकरण में १० नीकालते णि डालते क० कितनी कि० क्रियाओं गो० गौतम जा. जहांलग से वह पु०पुरुष अ० लोहे को अ० लोहे के कोठे में से जा० यावत् णि नीकालते ता० वहां लग से उस पु० पुरुष
अयणिव्वत्तिए अयकोटे णिव्वत्तिए, संडासए णिव्वत्तिए, इंगाला णिव्वत्तिया, है इंगालकड्डिणी णिव्वत्तिया भंच्छाणिवत्तिया तेविणं जीवा काइयाए जाव पंचहिं
किरियाहिं पुट्ठा ॥ ३ ॥ पुरिसेणं भंते ! अयं अयकोटाओ अओमएणं संडासएणं
गहाय अहिगरिणी उविखवमाणेवा णिक्खिरमाणेवा कइकिरिए ? गोयमा! जावं.. हुवा लोहे को लोहमय संडास से वाहिर.नीकाले या अंदर प्रक्षेप करे वहां लग उस पुरुष को कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी ऐसी पांच क्रियाओं लगती हैं. और जिन जीवों के शरीर से लोहा बना, लोहे की कोठी बनी, संडास बना, अग्नि बनी, अग्नि नीकालने का शला बना. और घमण बनी, उन जीवों के भी कायिकी आदि पांच क्रियाओं स्पर्शी ॥३॥ अहो भगवन् ! लोहे का कोठे में रहा हुवा से को लोहमय संडास से ग्रहण कर कोई पुरुष एरण में डाले अथवा नीकाले तो उस को कितनी क्रियाओं,
शाक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी
भावार्थ