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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
* पंचमाङ्ग विवाह पण्णसि ( भगवती सूत्र
दिन अ० अन्य भी इ० यहां वा० वायु व उत्पन्न होता है ण० नविन वा वायुकाय से अ० अग्निकाव ( उ० उज्वल होती है. ॥ २ ॥ पु० पुरुष भं० भगवन् अ० लोहा अ० एरण में अ० लोह की सं० संडासी { से उ० नीकालते प० डालते कः कितनी कि० क्रियाओं गो० गौतम जा० जहांलग से० वह पु० पुरुष अ० लोहे को अ० एरण में अ० लोहमय सं० संडास से उ० नीकालता है १० डालता है ता कहाँ लग | से० वह पु० पुरुष का० कामिकादि जा० यावत् पा० प्राणातिपात कि० क्रिया पं० पांच कि० क्रिया से पु० स्पर्शाया जे० जिन जी जीवों के स० शरीर से 'अ० लोहा पिं० बना हुवा है अ० एरण सं० अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि राईदियाई अण्णवेत्थ वाउयाए वक्कमइ णविणा वाउयाएणं अगणिकाए उज्जलइ ||२|| पुरिसेणं भंते ! अयं अयकोटुंसि अयोमएणं संडासणं उत्रिहमाणेवापविमाणवा कइ किरिए ? गोयमा ! जावंचणं से पुरिसे अयं अयकोसि अयोमएणं संडासएणं उव्विहिंतिया पविहिंतिवा तावचणं से पुरिसे काइयाए जाव पाणाइवाय किरिया पंचहि किरियाहिं पुट्ठे, जेसिंपिणं जीवाणं सरीरे हिंतो तीन अहो रात्रि. यहां अन्य वायुकाय भी उत्पन्न होवे क्योंकि वायुकाय विना अनिकाय प्रदीप्त नहीं होती है || २ || अहो भगवन् ! लोहे की कोठि में रहे हुवे लोहे को लोहमय संडास से बाहिर नीकाल ते या अंदर प्रक्षेप करते कितनी क्रियाओं लगे ? अझे गौतम ! जबलग वह पुरुष लोहे के कोठे में रहा
4- सोलहवा शतक का पहिला उद्देशा 4
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