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शब्दार्थ,
पंचमांगविवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
॥ षोडश शतकम् ॥ ___ अ. अधिकरणि ज. जरा क० कर्म जा. यावतिय गं. गंगदत्त सु० स्वप्न उ० उपयोग लो० लोक व बलि ओ० अवधि दी. द्वीप उ. उदधि दिदिशा थ० स्तनित च० चउदह सो सोलहवे में ते०१७ उस काल ते. उस समय में रा० राजगृह जा. यावत् १० पर्युपासना करते एक ऐसा व० बोले अ भं० भगवन् अ० एरण में वा. वायु व० उत्पन्न होवे हैं. हां अ• है से वह भ० भगवन् पु० स्पर्शा है अहिगरणि जराकम्मे जावतियं गंगदत्त समिणेय ॥ उवओग ॥ लोग वलि ओहि है दीव उदही दिसा थणिया ॥ १ ॥ चउद्दस सोलसमे ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं । रायगिहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी अत्थिणं भंते ! अधिकरणंमि वाउयाए ।
पन्नरहवे शतक में गोशाला का एकेंद्रियादिक में जन्म मरण करने का कहा. अब सोलहवे शतक में भी जीव के जन्म मरण कहते हैं. १ अधिकरण सो लोहार की लोह कुटने की एरण २ जरा ३ कर्म ४ जावई तिय ५ गंगदत्त देव की वक्तव्यता ६ स्वप्न ७ उपयोग ८ लोक ९ बलि १० अवधि ११ द्विप कुमार ११२ उदधि कुमार १३ दिशाकुमार और १४ स्तनित कुमार. ये चउदह उद्देशे सोलहवे शतक में कहे हैं." उस काल उस समय में राजगृह नगर में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे, परिषदा वेदने को आइ यावन धर्मोपदेश सुनकर पीछी गइ. उस समय भगवान् गौतम स्वामी यावत् पर्युपासना करते ऐसाई ।
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सोलहवा शतक को पहिला उद्देशा 8.24
भावार्थ
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