________________
शब्दाथ*उपवाइ में जा. यावत् स० सब दु० दुःखों का अं अंत का करेंगे से वैसे ही भं. भगवन् जायावत्
वि० विचरता है त० तेज णिणिसर्ग स० समाप्त हुवा अ० अध्ययन स. समाप्त ५० पन्नरहवा स. शतक ए. एक स्वर वाला स० समाप्त प० पन्नरवा स० शतक ॥ १५ ॥ ___ काहिति ॥ सेवं भंते भंतेत्ति जाव विहरइ ॥ तेयणिसग्गो सम्मत्तो अद्वेणं ॥ सम्म
त्तचं पण्णरसमंसयं, एक सरयं ।। सम्मत्तंच पण्णरसमसयं ॥ १५ ॥ भावार्थ प्रत्याख्यान करेंगे वगैरह सब वर्णन उववाइ में से जानना यावत् सब दुःखों का अंत करेंगे. अहो भग
बन ! आपके वचन सत्य हैं यों कहकर गौतम स्वामी विचरने लगे. तेज नीकलने रूप अध्ययन वा. उद्देशा रहित पन्नरहवा शतक समाप्त हुवा ॥ १५ ॥
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
ranAAAAAmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwwwwwwwwwwwwwwanm
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
Annanoraririnamnnahi