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शब्दार्थ |
4 पंचांग विवाह परणत्ति ( भगवती ) सू 424
भावार्थ
ज० जैसे अ० मैंने ॥ १९४ ॥ त० तब ते० वे स० श्रमण णि० निर्ग्रन्थ द० दृढ प्रतिज्ञी के केवली की अं० पास से ए० यह बात सो० सुनकर णि अधारकर भी डरे तत्रापाये तत्रमित हुने [सं० संसारभय से उ उद्विन ६० प्रतिज्ञी के केवली की बं० वंदना करेंगे ण नमस्कार करेंगे त० उस ठा० स्थान की आठ आलोचना करेंगे निं० निंदा करेंगे जा० यावत् प० अंगीकार करेंगे | ।। १२७ ।। ० ब ० दृढ प्रतिज्ञी के केवली व० बहुत वा० वर्ष के केवल प०पा० पाठकर अ० अपना आ० आयुष्य शेष जा० जानकर भ० भक्त प्रत्याख्यान करेंगे ए० ऐते ज० जैसे उ० जाणं अहं ॥ १९४ ॥ एणं हे समणा णिग्गंथा दट्टुपइण्णस्स केवलिस्स अंतियं एयमटुं सोच्चाणिसम्म भीया तत्था तसिया संसारभय उव्विग्गा दडू पइण्णं केवलिं दिहिति मसिहति तस्स ठाणस्स आलोइएहिति निंदिहिति जाव पडिवजेहिति ॥ १९५ ॥ तपणे केली बहूई वासाई केवलपरियागं पाउणिहिति २ ता अप्पाणं आउसेस जाणित्ता भत्तपच्चक्खाहिति एवं जहा उबचाइए जाव सव्वदुक्खाणमंत गतिक संसार में परिभ्रमण किया चैना परिभ्रमण मत करा ॥ १९४ ॥ उस समय में दृढ प्रतिज्ञी केवली की पास से ऐना सुनकर अवधार कर श्रमण निग्रंथ डरे, त्रास पाये, संसार से उद्विग्न बने और दृढ (प्रतिझी केवली को वंदना नमस्कार कर उस की आलोचना, निंदा यावत् प्रतिक्रमण करने लगे ॥ १९५ ॥ ३ फोर ढमविशी कुमार बहुत वर्ष पर्यंत केवली पर्याय पाल कर और अपना आयुष्य शेष जानकर भक्त
4 पन्नरहवा शतक
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