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शब्दार्थ | ए० एकान्त बा० अज्ञानी भं० भगवन् म० मनुष्य किं० क्या ने० नारकी का आ• आयुष्य ५० बांधे ति० निर्यंच का आ० आयुष्य प० बांधे म० मनुष्य का आ० आयुष्य प० बांधे दे० देव का आ० आयुष्य प० बांधे {ने० नारकी का आ० आयुष्य कि० करके ने० नरक में उ० उपजे ति० तिर्यच का आ० आयुष्य कि० { करके ति० तिर्यच में उ० उपजे म० मनुष्य का आ० आयुष्य कि० करके म० मनुष्य में उ० उपजे देव का आ० आयुष्य कि० करके दे० देवलोक में उ० उपजे गो० गौतम ए० एकान्त वा० अज्ञानी म० मनुष्य
दे०
सूत्र
भावार्थ
403 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
गंत बाणं भंते! मणूसे किं नेरइयाउयं पकरेइ, तिरिआउयं पकरेइ, मणुआउयं पकरेइ, देवाउयं पकरेइ, नेरइयाउयं किच्चा नेरइएस उववज्जइ, तिरियाउयं किचातिरिए उववज्जइ, मणुयाउयं किच्चा मणुएस उववज्जइ, देवाउयं किच्चा देव
सातवे उद्देशे में गर्भ की वक्तव्यतां कहीं. गर्भ आयुष्य से होता
इसलिये आगे आयुष्य संबंधि प्रश्न
{ करते हैं. अहो भगवन् ! एकान्त बाल ( मिथ्यात्वी ) मनुष्य क्या नरक के आयुष्य का बंध करता है, मनुष्य के आयुष्य का बंध करता है, तिर्यंच के आयुष्य का बंध करता है, या देव के आयुष्य का बंध करता है ! और नरक के आयुष्य का बंध कर के क्या नरक में उत्पन्न होता है, तिर्यच के आयुष्य का (बंध कर के तिर्यच में उत्पन्न होता है, मनुष्य के आयुष्य का बंधकर के मनुष्य में उत्पन्न होता है या देव
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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