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________________ शब्दार्थ *680* भावार्थ पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र अ० अनिष्टस्वर अ० अनादेय वचन वाला प० उत्पन्न भ० होवे व० वर्ण व० वध्य क० कर्म नो नहीं १० बंधेहुवे प० प्रशस्त ने जानना. जा० यावत् आ० आदेय वचन वाला प०. उत्पन्न भ० होवे से वह ए. ऐसे भं० भगवन्. ॥ १ ॥ ७ ॥ x अमणुण्णसरे, अमणामस्सरे, अणाएजवयणं, पञ्चायाएवि भवइ, वण्णवज्झाणिय, से कम्माइं नोबद्धाई पसत्थं णेयव्वं जाव आदेजवयणं पञ्चायाएवि भवइ ॥सेवं भंते भंतेत्ति पढमे सए सत्तमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १ ॥ ७ ॥ * रस, स्पर्श होवे. उन को सब संयोग अनिष्ट, अकान्त, अमिय, अशुभ, अमनोज्ञ, अमणाम होवे. वैसे ही वह जीव हीनस्वर, दीनस्वर, अनिष्टस्वर, अप्रियस्वर, अशुभस्वर, अमनोज्ञस्वर, अमनामस्वर व अनादेय वचनवाला होवे अर्थात् उन का वचन किसी को माननीय होवे नहीं. यह अशुभ कर्म का फलकहा और a. जिनोंने अशुभ कर्म नहीं किये हैं और धर्माचरण से शुभ कर्म की उपार्जना की है उन को शुभ फलका उदय होते वेशुभ वर्ण, गंध, रस व स्पर्शवन्त हावे. वैसे ही प्रियकारि, शुभ मनोज्ञ व सब मान्य करे ऐसे अच्छे संयोग मीले. सब में माननीय पूजनीय होवे और सब प्रकार के मुख भोगवे. यह सब पुण्य फल । जानना. अहो भगवन् ! आपने जो प्रतिपादन किया है वह सत्य है. यह पहिला शतक का सातवा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ १ ॥७॥ पहिला शतक का माता उद्देशा 9 388 80
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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