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________________ ago शब्दार्थम० महाविदेह वा ० क्षेत्र में ना० जो इ० ये कु० कुल भ० हैं अ ऋद्धिवंत जा यावत् अ० अपरिभूत , 4त. वैसे कु० कुल में पुः पुत्रपने प० उत्पन्न होगा ए. ऐसे ज० जैसे उ० उववाइ में द० दृढप्रतिज्ञी ०७१. वक्तव्यता सा. वही व० वक्तव्यता णि निरवशेष भा० कहना जा. यावत् के. केवल व० श्रष्ट णा०1. ज्ञान द० दर्शन स. उत्पन्न होगा ॥ १९२ ॥ त० तब द. दृढपतिज्ञी के. केवली अ० अपना अ० भूतकाल आ० जानकर णि निर्गन्थों को स. बोलावेंगे एक ऐसा व० बोलेंगे एक ऐसा ख० निश्चयार्थ चइत्ता महाविदेहे वासे जाइं इमाई कुलाइं भवंति अढाइं जाव अपरिभूयाई, तहप्पगारेसु कुलेमु पुत्तत्ताए पञ्चायाहिति, एवं जहा उववाइए दडपइण्णवत्तब्बया साचेव वत्तव्वया णिरवसेसा भाणियव्वा ॥ जाव केवलवरणाणदलणे समुप्पाजहिति ॥ १९२ ॥ तएणं दडपइण्णे केवली अप्पणो तीतद्धं आभोएइ, आभाएइत्ता समणे है णिग्गंथे सदाविहिति २ त्ता एवं वदिहिति एवं खलु अहं अजो ! इओ चिरातीयाए भावार्थ अनुक्रम से एक मनुष्य का भव व एक देवलोक का भव मो'ब्रह्म, महा शुक्र, आणत, प्राणत, आरण में है उत्पन्न होगा. और वहां से मनुष्य का भा करके सर्वार्थ सिद्ध महाविमान में देवतापने उत्पन्न होगा. वहां। अंतर रहित चवकर महाविदेह क्षेत्र में जो ऋद्धिवंत यावत् अपरिभूत कुल होगा उन में पुत्रपने उत्पन्न वगैरह आगे की सब वक्तव्यता दृढ प्रतिज्ञी कुमार की वक्तव्यता जानना यावत् केवल ज्ञान केवल *दर्शन उत्पन्न होगा ॥१९२॥ उस समय में वह दृढ प्रतिज्ञी केवली अतीत काल के भव जानेंगे और श्रमण | पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र पत्ररहवा शतक 8280
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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