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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
+8+ पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
देवतापने उ० उत्पन्न होगा से० वह त० वहां से लि० अंतर रहित उ० नीकलर ए० ऐसे ए० इस अ० अभिलाप से दा० दक्षिण के वि० विद्युत्कुमार ए ऐसे अ० अग्निकुमार व छोडकर जा० यावत् दा० दक्षिण के थ० स्थनिंत कुमार से वह त० वहां से उ० नीकलकर मा० मनुष्य का वि० शरीर जा० यावत् वि० विराधित जो० ज्योतिषी दे० देवलोक में उ० उत्पन्न होगा से० वह त० वहां मे अ० निरंतर ( च० चवकर मा० मनुष्य का वि० शरीर ल० प्राप्त करेगा. जा० यावत् अ० अविराधित सा० साधुपना (का० काल के मा० अवसर में का० काल करके सो० सौधर्म क० देवलोक में दे देवतापने उ० उत्पन्न नागकुमारेसु देवत्ता उववज्जिहिति; सेणं तओहिंतो अनंतरं उन्नहित्ता एवं एएवं अभिलावेण दाहिणिलेसु विज्जुकुमारेसु एवं अग्गिकुमारे वज्जं जाव दाहिणिल्लेसु
कुमारेसु मेणं तओ जाव उच्चट्टित्ता, माणुस्सं विग्गहं लभिहिति जाव विराहिय सामण्णे जोइसिएस देवसु उववज्जिहिति, सेणं तओ अनंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति । जाब अविराहिय सामण्णे कालमासे कालंकिच्चा, सोहम्मे कप्पे { इस तरह अनुक्रम से दक्षिण दिशि में विद्युत्कुमार यावत् अधिकुमार छोड़कर स्थनित कुमार तक में उत्पन्न होगा. वहां से चवकर मनुष्य का शरीर प्राप्त करेगा. वहां विराधित बनकर ज्योतिषि में देवतापने उत्पन्न होगा. वहां से अंतर रहित चवकर ज्योतिषि में उत्पन्न होगा, वहां से नीकलकर मनुष्य का
पनरहवा शतक
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