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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
२०२ अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
से० वह त० वहाँ अ० अंतर रहित उ० नीकलकर मा० मनुष्य का वि०शरीर ल० प्राप्त करेगा के ० कवल बो० सम्पत्वा प्राप्ति कर के के० केवल मुं० मुंड भ० होकर अ० गृहवास से अ० साधुपना प० अंगीकार करेगा ||| १९१ ॥ तवां वि०विराधित सा०साधु पनावाला का काल के अवसर में का० कालकर के द० दक्षिण के अ० असुर कुमार देव देवता में उ० उत्पन्न होगा से० वह त० वहां से उ० नीकलकर म० मनुष्य का (वि० शरीर तं० वैने जा० यावत् कि० विराधित का० काल कि० कर के दा० दक्षिण के णा० नागकुमार सेणं तओहिंतो अनंतरं उव्वहित्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिति, लभिहितित्ता केवलं बोहिं बुज्झिहिति २ त्ता, केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारिय पव्वइहिति ॥ १९१ ॥ तत्थवियणं विराहियसामण्णे कालमाने कालं किच्चा दाहिणिले असुरकुमारसु देवत्ताए उववजिहिति ॥ सेणं तओहिंतो जाब उच्चहित्ता माणुस्तं विग्गहं तंचेव जाव विराहिय सामण्णे काल जाव किच्चा दाहिणिल्लेसु | करेगा और सम्यक्त्व रूप बोधि प्राप्त कर के मुंडित होकर अगार में अनगारपना अंगीकार करेगा अर्थात् दीक्षित होगा || १९४ || वहां पर भी विराधित श्रामण्यवाला काल के अवसर में काल कर के दक्षिण दिशा के असुरकुमार में देवतापने उत्पन्न होगा. वहां से नीकलकर मनुष्य का शरीर प्राप्त करेगा और पुनः विराधित साधुपना से काल कर के दक्षिण दिशा के नागकुमार में उत्पन्न होग
* प्रकाशक- राजावहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रमा जीदे*
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