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२१.६३
शब्दाथ, 4 ( तेल कचोला) मु. अच्छी तरह गोपित चे वस्त्रविशेष समान सं० अच्छी तरह ग्रहण किया २० रत्न
करंड समान सु० रक्षण करने योग्य मा० मत सी० शीत उ. ऊष्ण जा. यावत् प० परिषह उ० उपसर्ग फु० स्पर्शे ॥ १९ ॥ त तब सा यह दा० पुत्री अ० अन्यदा क. कदापि गु० गुविणी स० श्वशुर' ग्रह से कु. पितृ गृह णि. लेजाते ऊ• बीच में द० अग्रि की जा. ज्याला से अ. हणाइ का• काल के मा अवसर में का काल कि०कर के दा दक्षिण अ० अग्निकुमार दे०देव में दे देवतापने उ० उत्पन्न होगा
चेलपेलइवसुसंपरिग्गहिया, रयणकरंडगउँविवसुसारक्खिया, सुसंगोविया, माणसीयं, माणउण्हं, जाव परिस्सहीवलग्गं फुसंतु, ॥ १९ ॥ तएणं सा दरिया अण्णया कयायि गुव्वणी सुसुरकुलाओ कुलघर णिजमाणी अंतरा देवग्गिजालाभिहया
कालमासे कालं किच्चा दाहिणिलेसु आग्गकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववजिहिति, भावार्थ तेल के कलश जैसी रखने योग्य, रत्न के करंड समान यत्ना करने योग्य, अच्छी तरह गोपने योग्य और 300
शीत, उष्णादि परिवह व उपसर्ग से रक्षण करने योग्य ऐसी भार्या होगा. ॥११० ॥ अब वह बाला गर्भिणी हुवे पीछे एकदा श्वशरकुल से पितृकुल जाते मार्ग में अग्नि से जलेगी और काल के अवसर में काल कर के दक्षिण दिशि के अग्निकमार देवलोक में देवतापने उत्पन्न झेगी, वहां से अंतर रहित चक्कर मनुष्य भव माप्त
विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 4g
34238*- पन्नरहवा शतक 428
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