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शब्दार्थ
43 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
यावत् कि कर के इ०इस जम्बूद्वीप में भा० भरत क्षेत्र में विविध्यगिरि के पा०पर्वत के मूल में वि०विभेल * स० सन्निवेश में मा० ब्राह्मण कुल में दा० पुत्रीपने उ० उत्पन्न होगा ॥ १८८ ॥ त० तब त• उस दा० । पुत्री को उ० मुक्त बा० बालभाव से जो. यौवन अ० अप्राप्त १० प्रतिरूप सु० दान से १० प्रतिरूप वि. विनय से प० प्रतिरूप भ० भार को भा० भार्यापने द. देगा ॥ १८९ ॥ सा. बह तक उसकी भ० भार्या भ० होगा इ० इष्ट के० कांत जा. यावत् अ० मनोज्ञ भं• पात्र क. करंडिय स० समान ते. तेलकेल
जंबूद्दीवे दीवे भारहेवासे विज्झगिरिपायमूले विभेले सण्णिवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पञ्चायाहिति ॥ १८८ ॥ तएणं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं जोव्वणगमणुप्पत्तं पडिरूवएणं सुकेणं पडिरूवएणं विणएणं पडिरूवियस्स भत्तारस्स भारियत्ताए दलइस्सइ ॥ १८९ ॥ साणं तस्स भारिया भविस्सइ,
इट्ठा कंता जाव अणुमया भंडकरंडगसमाणा - तेल्लेकेलाइवसुसंगोविया शस्त्र से हणाया. हुवा राजगृह नगर की अंदर वेश्यापने उत्पन्न होगा. वहां से हणाया हुवा इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में विध्यगिरी के मूल में विभेल सन्निवेश में ब्राह्मण कुल में पुत्रीपने उत्पन्न होगा ।। १८८॥ जब वह बालिका यौवनस्था को प्राप्त होगी तब योग्यदान व योग्य बिनय से योग्य भार को भार्या के लिये देंगे ॥ १८९ ॥ वह बालिका उस को इष्ट, कांत, प्रिय, यावत् प्यारी, आभरण के करंडीये समान,*
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ
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