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'शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अ० अनेकलक्ष जा० यावत् किं० करके जा० जो इ० ये ते० तेउकाय वि जाति भ० होती है ई० अधि में जा यावत् सू० सूर्यकांत मणिणि निश्रित ते० उत अ० अनेक स० लक्षवार जा० यावत कि० करके जा० जो इ० ये आ० अप्काय वि० जात भ० होती हैं उ० ओस खा० सारोदक ख० खातोदक में स० सर्वत्र स० शस्त्र से व० हणाया जा यावत् कि० करके इ० ये पु० पृथ्वी कायः वि० विधान भ० हैं तं० चैते पु० पृथ्वी स० कंकर जा० यावत् सूँ० सूर्यकांतमणि त० उस में अ० - अनेक स० चणं कडुयरुक्खेसु कडुयवल्लीसु सब्वत्थविणं सत्थबज्झे जाव किच्चा ॥ जाई इमाई वाउक्काइय विहाणाई भवति तजहा पाईणवाताणं जाव सुद्धवाताणं ते सुअणेगसयसहस्स जाव किच्च ।। जाई इमाई उक्काय विहाणाइ भवति, तंजहा इंगालाणं जाव सूस्यिकंतमणिणिस्सियाणं तेसु अणेगसय सहस्त जाव किच्चा || जाई इमाई आउकाइय विहाणाई भवंति तंजा उस्साणं जाव खातोदगाणं तेसु अणेग जाव पच्चायातिस्सइ उस्सण्णं चणं. हस्ति मुंड. उन में अनेक लक्षवार उत्पन्न होकर बेइन्द्रिय में उत्पन्न होगा जिन के नाम पुलकृमि यावत् समुद्रलींख. उन में अनेक लक्षवार उत्पन्न होकर वनस्पति में उत्पन्न होगा जिन के नाम. वृक्ष) गुच्छा यावत् कुहाण. इन में अनेक वक्त मरकर बहुत कंटक वृक्ष व कडवे वृक्ष में उत्पन्न होगा वहां अनि आदि शस्त्र से हणाकर काल के अवसर में काल कर वायुकाय के भेदों में उत्पन्न होगा, जिन के नाम
● प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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