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________________ शब्दार्थ | सूत्र भावार्थ 48 पंचांग विवाह पण्णति ( भगवती ) मूत्र के कीडे मायावत् ते तेइन्द्रिय भ० होते हैं ओ० औपचिक जा० यावत् ८० हस्ति सोंड बे० द्विद्रियः पु० पुल कि० कीडे जा० यावत् म० समुद्र की लिख व वनस्पति की जात भ० होते हैं रु० वृक्ष गु० गच्छ जा यावत् कुः कुहुण ते० उस में अ० अनेकवार जा० यावत् प० उत्पन्न होगा उ० प्रायः क ०. कहुक वृक्षों में क० कटुक बल्ली में स० सवत्र स० शस्त्र से हणाया जा० यावत् कि० करके जा० जो इ० ये व वायुकाय की वि० जाति भ० होते हैं प० पूर्वेदिशि का वातं जा० यावत् सु० शुद्धवात तें उन में पोत्तियाणं जहा पण्णवणापदे जाव गोयमकीडाणं तेसु अणेगसय जाव किच्चा ॥ जाई इमाई इंदिय विहाणाई, भवंति तंजहा ओवचियाणं जाव हत्थिसोंडाणं तेसु अणेम.. जात्र किच्चा जाई इमाई बेइंदियविहाणाइं भवंति तंजहा पुलाकिमियाणं जा समुद्दलक्खाणं तेसु अणेगसय जाब किच्छा ! जाई इमाई बणस्सइ विहाणाई भवति तं जहा रुक्खाणं गुच्छाणं जात्र कुहुणाणं तेसु अणेग जाव पच्चायाइस्सइ; उस्सण्णं नाम एक खरवाले अश्वादि, दो खरवाले गवादि, गंडीपद हस्ती आदि सनिपद सिंहादि उन में अनेक लक्षवार जन्म मरण करके जलचर में उत्पन्न होवे जिन के नाम, मत्स्य, कच्छ यावत् सुसुमार इन में अनेक लक्षवार जन्म मरण करके चतुरेन्द्रिय में उत्पन्न होगा जिन के नाम अंधिक, पौत्रिक यावत् गोवर के कीडे, इन में अनेक लक्ष वार उत्पन्न होकर तेइन्द्रिय में उत्पन्न होगा जिन के नाम औपचित यावत् 4 पनरहवा शतक 4+++ २१५९
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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