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________________ शब्दार्य पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 40882 होगा स० सर्वत्र सशस्त्र से च० हणाया दा० दाहव्युत्क्रात का० काल के मा० अबसर में का. काल । कि. कर के जा० जो ये भु. भुजपरिसर्प की वि. जाति भ होती हैं गो गोह ण नकुल जैसे प० पनवणापद में जा. यावत् जा० जाहक च० चतुष्पद ते. उन में अ. अनेकवक्त स० लक्ष ज० जैसे ख० खेचर जायावत् कि० कर के जा. जो इ० ये उ० उरपरिसर्प वि विधान भ. ई तंजहा चम्मपक्खीणं, लोमपक्खीणं, समुग्गपक्खीणं, वियतपक्खीणं, तेसु अगसय सहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता, उदाइत्ता तत्थेव भुजो. भुजो पञ्चायाति; सज्वत्थविणं सत्थवझे दाहवकंतीए कालमासे कालंकिच्चा जाई इमाइं भुयपरिसप्तविहाणाई भवति, तंजहा गोहाणं, णउलाणं, जहा पण्णवणापदे जाव जाहगाणं चउप्पाइयाणं तेसु अणेगसयसहस्सक्खुत्ता सेसं जहा खहचराणं जाब किच्चा, जाई इमाई उरपरि स्थितिपने उत्पन्न होगा. वहां से नीकल कर भूजपरिऽपने उत्पन्न होगा. यहां शस्त्र से हणाया हुई यावत् काल करके दूसरी शर्कर प्रभा में उत्कृष्ट स्थिति से उत्पन्न होगा. वहां से नीकलकर भुजपरिसर्प में उत्पन होगा. वहां से नीकलकर पहिली रत्नपभा पृथ्वी में उत्कृष्ट स्थिति से उत्पन्न होगा वहां से नीकल-ई संझी में उत्पन्न होगा. वहां से काल करके असंज्ञी में उत्पन्न होगा. वहां से काल करके पुनः रत सभा पृथ्वा म पल्यापम क असख्यात पृथ्वी में पल्योपम के असंख्यातवे भाग की स्थिति से नारकीपने उत्पन्न होगा. वहां से नीकलकर 8380809208 पन्नरहदा शतक 8 22 8
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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