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________________ शब्दार्थी १० स०शर्करप्रभा में स०मरीसप (भुजपर विशेष ) इ.इस र रत्नप्रभा सं०संज्ञी में अ.असंझी ५० पल्योपम के अ० असंख्यातभाग ठि• स्थितिवाली ण. नरक में ण. नारकीपने उ. उत्पन्नहोगा . वहां से आ यावत् उ० नीकलकर इ० ये ख० खेचर को वि० जात भ० होते हैं च० चर्मपक्षी लो० रोमपक्षी स} समुद् पक्षी वि० विततपक्षी तं. उस में अ० अनेक स० लक्षवार उ० मरकर भु. वारंवार ५० उत्पन्न ट्टित्ता,दोच्चंपि पक्खीसु उववाजिहिति,जाव किच्चादोच्चाए सक्करप्पभाए जाव उव्वहित्ता,सरीसवेसु उववजिहिति,तत्थविणं सत्थवज्झ जाव किच्चा,दोच्चंपि दोच्चाए सक्कर जाव उव्वहित्ता दोच्चंपि सिरीसवेसु उववाजिहिति, जाव किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालदिइयसि णरयंसिणेरइयत्ताए उववजिहिति जाव उव्वाहित्तासण्णीसु उववाजिहिति तत्थविणं सत्थवज्झ जाव किच्चा असण्णीसु उववाजिहिति, तत्थविणं सत्थवझे जाव किच्चा दोचंपि इमीसे रयणप्पभाए पुढवीएपलिओवमस्स असंखेजइ भागद्वितियसि णरयंसि णेरइयत्ताए उक्वजिहिति, सणं तओ जाव उवद्वित्ता जाई. इमाइं खहचरविहाणाई भवंति भावार्थ स्थिति से उत्पन्न होगा. वहां से नीकलकर पुनः सिंहपने उत्पन्न होगा. वहां से काल के अवसर में काल कर तीसरी बालुप्रभा में उत्कृष्ट स्थिति से उत्पन्न होगा. वहां से अंतर रहित नीकलकर पक्षिपने उत्पन होगा. वहां शस्त्र से हणाया हुवा काल के अवसर में काल करके पुनः तीसरी नारकी में उत्पन्न होगा. 10वहां से निरंतर चवकर पुनः पक्षि में उत्पन्न होगा. वहां से काल करके दूसरी शर्कर प्रभा में उत्कृष्ट मुनि श्री अमोलक ऋषिजी * 12 अनुवादक-बालब्रह्मचारी प्रकाशक राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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