________________
'शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
(उ० मीकलकर म० मत्स्य में उप उत्पन्न होगा त० वहां स० शस्त्र से हणाया दा दाहव्युत्क्रान्त का० काल के मा० अवसर में का० काल करके दु० दुसरी वक्त अ० नीचे की स० सातवी उ० उत्कृष्ट काल ठि स्थिति णे० नारकी में उ० उत्पन्न होगा से० वह त० वहां से अं अंतर रहित उ० नीकलकर दो० दुसरी वक्त म० मत्स्य में उ० उत्पन्न होगा त० वहाँ पर भी स० शस्त्र से व० हणाया हुवा जा० यावत् कि० कालं किच्चा दोपि अहे सत्तसाए उक्कोसकालट्ठितियंसि णरयंसि णेरइयत्ताए उबवज्जिहति ॥ सेणं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता दोचंपि मच्छेसु उववज्जिहिति तत्थविणं सत्यवज्झे जाव किच्चा, छट्टीए तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्टिइयांसे णरयंसि रइयत्ता उवजिहिति, सेणं तओहिंतो जाव उन्वहित्ता इत्थियासु उववज्जिहिति, तत्थविणं सत्थवज्झे दाह जाव दोच्चंपि छट्ठीए तमाए पुढबीए उक्कोसकाल जाव उव्वहित्ता, कर दूसरी वक्त मत्स्य में उत्पन्न होगा. वहां पर भी शस्त्र से हणाया हुवा यावत् दाइ उत्पन्न होने पर काल { के अवसर में काल करके छठी तमा में उत्कृष्ट स्थिति से उत्पन्न होगा. इस में उत्कृष्ट स्थिति बावीस साग{रोपम की कही है. वहां से अंतर रहित नीकलकर यावत् स्त्री में उत्पन्न होगा. वहां पर दाह उत्पन्न होने पर शस्त्र से हणाइ हुइ काल के अवसर में काल करके छठी नरक में उत्कृष्ट बाबीस सागरोपम की स्थिति से उत्पन्न होगा. और वहां से अंतर रहित नीकलकर यावत् दूमरी वक्त स्त्री में उत्पन्न होगा. वहां
प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी #
२१५४