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शब्दार्थ
मुनि श्री अमोलक ऋषिजी अनुवादक-बालब्रह्मचारी
चंद्र सूः सूर्य जा. यावत् गे० ग्रेवेयक विमान स० सशत वी० उल्लंघकर स० सर्वार्थ सिद्ध म० महाविमान में दे० देवतापने उ उत्पन्न होगा त० वहां दे देवों की अ० अजघन्य अनुत्कर्ष त० तचीस सा मागरोपम की ठि० स्थिति प० प्ररूपी त• वहां मु. सुमंगल दे० देवकी अ० अजघन्य अ० अनुत्कर्ष ते. तेत्तीस सा. सागरोपम की ठि० स्थिति प० प्ररूपी ॥ १८६ ॥ से वह भं भगवन् सु० सुमंगलदेव ता. उस दे० देवलोक से जा. यावत् म० महाविदेह वा० क्षेत्र में मि० मीझो जा. यावत् अं• अंत का०
अणसणाई जाव छेदत्ता आलोइय पडिक्कते समाहिपत्ते उट्ठ चंदिम सूरिय जाव गवेजगविमाणे ससयं वाईवइत्ता सव्वटसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववजिहिति ॥ तस्थणं देवाणं अजहण्णमणुकोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता, तत्थणं सुमगलस्सधि देवस्स अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता।। १८६॥
सेणं भंते ! सुमंगले देवे ताओ देवलोगाओ जाव महाविदेहे वासे सिडिझाहिति जाव भक्त यावत् विचित्र प्रकार के तप कर्म से आत्मा को भावते हुवे बहुत वर्ष साधु की पर्याय पालते हुवे एक मास की संलेखना सहित साठ भक्त अनशन छदकर आलोचना प्रतिकपण कर काल के अवसर में काल करके चंद्र मूर्य यावत् अवेयक विमान को उल्लंघ कर सर्वार्थसिद्ध महाविमान में देवतापने उत्पन्न होगा. वहां दवों की तेत्तीम सागरोपम की स्थिति है, इम में मुमंगल देव की तेलास सागरोपम की स्थिति
॥ १८६ ॥ वह मुमंगल देव वहां से आयुष्य, स्थिति व भवक्षय से चत्रकर महाविदह क्षेत्र में सीझेगा
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदव सहायजी ज्वालाप्रसाद जी *