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शब्दार्थ
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* पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
स. सहन किया ख. खमा जा० यावत् अ० अहियासा ज० यदि ते तुझे त उस समय मु. सुनक्षत्र | अ. अनगारने प० समर्थ हो० होकर स. सम्यक् प्रकारसे स- सहन किया जा० यावत् आ० अहियासा
• यदि ते. तुझे त उन समय स० श्रमण भ. भगवंत म. महावीर १० समर्थ हो. होकर जा. यावत् अ) सहन किया तं• इससे णो नहीं अ० में ततैमा स० सम्यक् प्रकार से स० सहन करूंगा जा यावत् अ० आहियातूंगा अ० में ते० तुझे स० अश्वसहित स. रथसहित स० सारथी सहित त. तप. तेज से ए. एक अप्रहार कू० कूट प्रहार भ० भस्म का करूंगा ॥ १८३ ॥ त० तब से वह वि०१७
पभणावि होऊगं सम्मं सहियं खमियं तितिक्खियं अहियासियं, जइ ते तदा सुणक्ख.
तेणं अणगारेणं पभूणावि होऊगं सम्म साहयं खमियं जाव अहियासियं, जइ ते है तदा समणेणं भगवया महावीरेणं पभूणावि जाव अहियासियं ॥ तं णो खलु अहं .
तहा सम्म सहिस्सं जाव अहियासिस्सं, अहं ते णवरं सहयं सरहं ससारहियं तवेणं से
तेएणं एगाहचं कूडाहच्चं भासरासिं करेजामि ॥ १८३ ॥ तएणं से विमलवाहणे यात् वहां छमस्थाना में तू काल कर गया. उस समय सर्वानुभूति अनगार तेरे पर तेजोलेश्या डालने है में समर्थ होने पर भी उौन सम्यक् प्रकार से सहन किया, खमा यावत् अहियासा, सुनक्षत्र अनगारने
भी समर्थ होने पर सहर किया और महावीर स्वामीने भी समर्थ होने पर सहन किया; परंतु मैं सम्पन १०० प्रकार से सहन करूंगा नहीं और तुझें अश्व, रथ, सारथि सहित भस्म करूंगा ॥ १८ ॥ सुमंगल अन
9803483 पनरहवा शतक 8369381
भावार्थ