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शब्दार्थ देदीप्यमान स. मुमंगल अ० अनगार के र० स्थ मि. मस्तकपे णो० चलावेगा ॥ १८० ॥ त० तब से है।
वह मु० मुमंगल अ० अनगार वि० विमल वाहन र० राजा से णो० चलाया स• शनैः उ० उठकर दो ७दमरी वक्त उ. उर्ध्व बाहा प० रखकर जा० यावत् आ.आतापना लेते विविचरेगा ॥१८१ ॥ त. तब
से वह वि० विमल वाहन रा० राजा सु० सुमंगल अ.अनगार को दो० दूसरी वक्त भी र० रथ सि० मस्तक से गो० चलावेगा ॥१.८२॥ त०तब से वह सुसुमंगल अ०अनगार वि०विमल वाहन र राजा से दो० दूसरी मिसेमाणे सुमंगलं अणगारं रहसिरेणं णोलावेहिति ॥ १८० ॥ तएणं से सुमंगले अणगारे विमलवाहणेणं रण्णा रहसिरेणं णोलाविए समाणे : सणियं २. उद्धेहिंति उद्धेहिंतित्ता दोच्चंपि उठें बाहाओ पगिज्झिय २ जाव आयावेमाणे विहरिस्सइ॥१८॥ तएणं से विमलवाहणे राया सुमंगलं अणगारं दोच्चपि रहसिरेणं णोलावेहिति "॥ १८२ ॥ तएणं से सुमंगले अणगारे विमलवाहणेणं रण्णा दोच्चंपि रहसिरेणं होगा और सुमंगल अनगार पर रथ फीरावेगा ॥ १८० ॥ विमलवाहन राजा से इस तरह रथ फीराने
पर वह सुमंगल अनगार पुनः खडे होंगे और ऊर्च भूजारख कर आतापना लेते हुवे विचरेंगे ॥ १८१ ॥१॥ सफीर विमल वाहन सजा दुसरी वक्त भी रथ कीरावेगा ।। १८२ ॥ अमुमंगल अनगार-दुसरी व
पंचमांगविवाहःपण्णत्ति (भगवती ) सूत्र 8.
पनरहवा शतक 8
भावार्थ
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