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शब्दार्थ/
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tet पंचमांग विवाहपण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र +8+
रानेश्वर जा. यावत् स० सार्थवाह ५० प्रभृति से ए० यह अ० बात की वि. विज्ञप्ति की हुई णो• नहीं । ध० धर्म णो नहीं त तप मि० मिथ्या विनय से ए• इस अ० बात ५० मुनी ॥ १७६ ॥ त. उस इस० शतद्वार ण नगर की ब. वाहिर उ० उत्तरपूर्व दि० दिशा में ए. यहां सु० सभभि भाग : उद्यान भ० होगा स..सर्वऋतु में व० वर्णन योग्य ॥ १७७ ॥ ते. उस का काल तं० उम स० समय में} of वि. विमल नाथ अ० अरिहंत के ५० प्रतिशिष्य सु०, सुमंगल अ०. अनगार जा० जाति संपन्न ज. जैसे
तेहिं बहूहिं राईसर जाव सत्थवाहप्पभिईहिं एयमटुं विण्णत्तेसमाणे णो धम्मात्ति णोतवोत्ति मिच्छाविणएणं एयमटुं पडिपुणेहिं ॥ १७६ ॥ तस्सणं सयदुवारस्स णयरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए एत्थणं सुभूमिभागे उजाणे भविस्सइ, , सव्योत्तुय दण्णओ ॥ १७७ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं विमलस्स अरहओ पउ.
प्पए सुमंगले णामं अणगारे जाइसंपण्ण जहा धम्मघोसस्स वण्णओ जाव श्वर यावत् सार्थवाह प्रमुखने ऐसा कहा तब उसने इस में धर्म नहीं है. इस में तप नहीं है ऐमी बुद्धि सहित मिथ्याविनय ( असत्य देखाव ) से इस बात को सुनी ॥ १७६ ।। उस शतद्वार नगर की वाहिर सुभूमि-31 भाग नाम का एक उद्यान होगा, वह सब ऋतु को वर्णन योग्य होगा ॥१७७॥ उस काल उस समय में श्री ka विमलनाथ अरिहंत के प्रतिशिष्य सुमंगल अनगार जाति संपन्न वगैरह धर्मघोष अनगार जैसे वर्णनवाले
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पबरहवा शतक 48024
भावार्थ