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________________ शब्दार्थ मि० मिथ्यात्व वि० अंगीकार किया अ० कितनेक को आ०आक्रोश करतेहो जा० यावत् अ० कितनेक को (नि० देश रहित क० करतेहो तं० इसलिये णो० नहीं ए० यह दे० देवानुप्रिय को से० श्रेय अ० हमको र० राज्य को र० राष्ट्रको जा० यावत् ज० देश को से० श्रेय जं० जो दे० देवानुमिय स० श्रमण णि० निर्ग्रन्थ मि० मिध्यात्व वि० अंगीकार किया तं० इसलिये वि० अटको दे० देवानुप्रिय ए० ऐसी बात अ० नहीं करने को ॥ १७५ ॥ त० तब से वह वि० विमल वाहन रा० राजा ते० उन व० बहुत रा० अत्थेगइए आउसइ जाब अत्थेगइए निव्विसए करेंति, तं णो खलु एयं जंणं देवापिया सेयं णो खलु एयं अम्हं सेयं, णो खलु एयं रज्जरसवा जाव जणवयसवा सेयं, जंणं देवाणुप्पिया ! समणेहिं णिग्गथेहिं मिच्छं विष्पडिवण्णा, तं विरमंतुणं देवाणुपिया ! एय मटुस्स अकरणयाए || १७५ ॥ तणं से विमलवाहणे राया ( जोडकर जय विजय शब्द से विमल वाहन राजा को वधावेंगे और ऐसा वोलेंगे कि अहो देवानुप्रिय ! आपने श्रमण निग्रंथों से मिथ्यात्व अंगीकार किया है यावत् आप कितनेक श्रमण निग्रंथों को देश से बाहिर नीकालते हो, परंतु यह आप को, हम को, राज्य को, व देश को कल्याणकारी नहीं है. इस से अहो देवानुप्रिय ! ऐसा कार्य आपको नहीं करना चाहिये || १७५ || जब विमलवाहन राजा को बहुत राजे 48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अम लक ऋषिजी - भावार्थ * प्रकाशक-सजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी २१४४
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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