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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
4 पंचमांग विवाह परणति ( भगवती ) सूत्र
रा० राजाने स० श्रमण णि निर्ग्रन्थों से मित्र मिथ्यात्व वि० अंगीकृत किया तं० इसलिये से० श्रेय दे० देवानुप्रिय अ० हम को वि० विमल वाहन रा० सजा को ए० इस बात की वि० विज्ञप्ति करने को ते० ऐसा क०करके अ० परस्पर की अं० पास ए०इस अ०बात प०सुनकर जे० जहां वि० विमल वाहन रा० राजा ते० वहां उ० आकर कः करतल प० परिग्रहीत वि० विमल वाहन रा० राजा को ज० जय वि० विजय से व० वधाये वर वधाकर ए० ऐसा व० बोलेंगे ए ऐसे दे० देवानुप्रिय स० श्रमण णि० निर्ग्रन्थ से वाहणे राया समणेहिं णिग्गंथेहिं मिच्छं विप्पडिवण्णे, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं विमलवाहणं रायं एयमटुं विष्णवेत्तिए त्तिकद्दु, अण्णमण्णस्स अंतियं एयमटुं पडसुर्णेति पडिसुर्णेतित्ता जेणेव विमलवाहणे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता करयल परिग्गायं विमलवाहणं रायं जएणं विजएणं वद्धार्वेति वद्धावेतित्ता एवं वदिसहिति एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणेहिं णिग्गंथेहिं मिच्छं विप्पडिवण्णा, {है यावत् कितनेक को देश वाहिर करता है. अहो देवानुप्रिय ! यह अपन को (विमल वाहन राजा, देश, सेना, वाहन, पुर व अंतःपुर को कल्याणकारी नहीं है. ( नुप्रियः ! विमलवाहन राजा के पास जाना और उन को विज्ञप्ति करना अपन को श्रेष्ट है) ऐसा कहकर परस्पर ऐसी बात सुनी और विमल वाहन राजा की पास सब गये. वहां दोनों हाथ )
श्रेय नहीं है, वैसे ही इसलिये अहो देवा - }
परहवा शतक
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