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________________ शब्दाथ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी अ० कितनेक को नि० देशरहित कर करेंगे ॥ १७८ ॥ त० तव स० शतद्वार ण नगर में ब० बहुत रा०.. राजश्वर जा. यावत् व० बोलेंगे ए.० ऐसे दे० देवानुप्रिय वि० विमलवाहन रा० राजाने स. साधु णि.14 निर्ग्रन्थों से मि० मिथ्यात्व वि० अंगीकृत किया अ० कितनेक को आ० आक्रोश करते हैं जा. यावत् "णि देश रहित क० करते हैं. इसलिये णो नहीं ए. यह अ. अपन' को से० श्रेय णो नहीं ए. यह बि० विमल वाहन को से श्रेय णो नहीं . यह र राज्य को र० राष्ट्र ब. सैन्य वा वाहन को पु० नगर को अं० अंतः पुर को ज. जनपद को से. श्रेय जे. क्यों की वि. विमल वाहन सए करेहिति ॥ १७४ ॥ तएणं सतदुवारे णयरे बहवे राईसर जाव वदिहिंति एवं खलु देवाणुप्पिया ! विमलवाहणे राया समणेहिं णिग्गंथेहि मिच्छं विप्पडिवण्णे अत्थेगइए आउसति जाव णिब्रिसए करेति, तं णो खलु देवाणुप्पिया ! एवं अम्हं सेयं, णो खलु एयं विमलवाहणस्स रण्णो सेयं, णो खलु एयं रजस्सवा रटुस्सवा बलस्सवा वाहणस्सचा पुरस्सवा अंतेउरस्सवा जणवयस्सवा सेयं, जेणं विमल आहार पानी का निषेध करेगा, कितनेक को नगर बाहिर करेगा और कितनेक को देश बाहिर भी करेगा ॥ १७४ ॥ फीर शतद्वार नगर में राजेश्वर यावत् सार्थवाह प्रमुख मीलकर ऐसा वोलेंगे कि अहो देवानुप्रिय ! विमलवाहन राजाने श्रमण निगथों से मिथ्यात्व अंगीकार किया है इस मे कितनेक को आक्रोश कर .प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी. भावार्थ %3A
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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