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शब्दार्थ
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सुत्र
र पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र 4082
अ० अन्यदा क. कदापि स० साधु णि निर्गन्धों से मि० मिथ्यात्व वि० अंगीकार करेंगे अ० कितनेक को आ० आक्रोशकरेंगे उ० उपहास करेंगे णि पृथक् करेंगे णि निर्भत्सना करेंगे बं० बांधेगे णि रुंधन करेंगे अ० कितनेक का छ० चर्मछेद क करेंगे अकितनेक को १० मारेंगे अ.कितनेक को उ016 पीडा करेंगे अ० कितनेक के व. वस्त्र प० पत्र के कंवल पा० रजोहरण अ० छदेंग वि. विशेष छदेंगे २१४१. भि० भेदेंगे अ० कितनेक के भ० भक्तपान वो० नष्ट करेंगे अ० कितनेक का णि नगर रहित का करेंगे
विमलवाहणे राया अण्णयाकयायि समणेहिं णिग्गंधेहि मिच्छं विप्पडिवजेहिंति, अत्थेगइए आउसिहिंति, अत्थेगइए उवहसिहिति, अत्यंगइए णिच्छोडेहेति, अत्यंगइए णिब्भच्छेहिति, अत्थेगइए बंधेहिंति, अत्थेगइए णिरुंभोहति, अंत्थेगइयाणं , छविच्छेदं करोहिंति अत्थेगइए पम्मारेहिंति अत्थेगइयाणं उद्दवहिति अत्थेगइयाणं वत्थपडिग्गहकंवलपायपुंच्छणं आच्छिदिहिंति, विच्छिदिहिंति, भिंदिहिंति, अत्थेग
इयाणं भत्तपाणं वोच्छिदिहिंति, अत्थेगइयाणं णिण्णारे करोहिति, अत्थेगइए णिब्विकितनेक साधुओं को आक्रोश करेगा, कितनेक माधुओं का हास्य करेगा, कितनेक साधुओं की शिष्य शाखा का नाश करेगा, कितनेक साधुओं को दुर्वचन से निर्भर्त्सना करेगा, कितनेक साधुओं को बंधन । से बांधेगा, कितनेक साधुओं का रूंधन करेगा, कितनेक को चर्म छेद करेगा, कितनेक को मार मारेगा, कितनेक को उपद्रव करेगा, कितनेक के वस्त्र, पात्र, कंवल, रजोहरण फाडेगा तोडेगा, कितनेक साधुओं को ।
*- पत्ररहवा शतक 3
भावार्थ
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