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शब्दार्थ
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
शतद्वार ण नगर में व बहुत रा. राजेश्वर जा. यावत् प० प्रभूति भ० अन्योन्य स. बोलावेंगे जब जिस से दे० देवानुप्रिय अ० हमारा दे० देवसेन र० राजा को से० श्वेत सं• शंखतल वि० विमल स० समान च० चारदांतवाला ह० हस्तिरत्न स. हुवा तं० इसलिये हो होओ दे० देवानुप्रिय अ० हमारे ३० देवसेन र० राजा का त० तीसरा णा नाम वि० विमलवाहन ॥ १७२ ॥ त० तब तक उस ० राजा का ता तीसरा णानाम वि०विमलवाहन ॥ १७३ ॥ त० तब से वह वि०विमलवाहन रा० राजा
पभितीओ अण्णमण्णे सद्दावेहिति जम्हाणं देवाणुप्पिया ! अम्हं देवसेणस्स रणो सेते संखतल सण्णिगासे चउइंते हत्थिरयणे समुप्पण्णे, तं होऊणं देवाणुप्पिया ! अम्हं देवसेणस्स रण्णो तच्चेवि णामधेजे विमलवाहणे, विमलवाहणे ॥ १७२ ॥ तएणं
तस्स देवसेणस्स रण्णो तच्चेवि णामधेजे विमलवाहणेति ॥ १७३ ॥ तएणं से बहुत राजेश्वर यावत् सार्थवाह प्रभृति परस्पर बोलावेंगे और ऐसा कहेंगे कि अहो देवानुप्रिय ! अपने बैं राजा को शंखतल समान चार दांतवाला श्वेत हस्ती रत्न उत्पन्न हवा. इसलिये अपना देवसन राजा का
सरा नाम विमलवाहन होवो ॥ १७२ ॥ उस दिन से देवसेन राजा का तीसरा नाम विपलवाहन होगा ॥ १.७३ ॥ अव विमलवाहन राजा अन्यदा कदापि श्रमण निग्रंथों से मिथ्यात्व अंगीकार करेगा, *।
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ