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________________ शब्दार्थ | १० फल जैसे अ० होवे चि० खडारहे नि० बैठे तु० सोवे मा० माता सु० सोती होवे मु० सोवे जा० जगती । होवे जा० जगे सु० सुखी होती सु० सुखी होवे दु० दुःखी होती दु० दुःखी होवे हैं. हां गो० गौतम जी० जीव ग० गर्भ में ग० गया हुवा जा० यावत् दु० दुःखी होते दु० दुःस्वी भ० होवे ॥ २१ ॥ १०१ प्रसन्न का० अवसर में सी० मस्तक से पा० पावसे आ० आवे स० सीधा आ० आवे ति• तिर्छा आ० अंबखुजएवा, अच्छेजवा, चिटेजवा, निसीएजवा, तुयटेजवा; माऊए सुयमाणीए सुयइ, जागरमाणीए जागरइ, सुहियाए सुहिए भवइ, दुहियाए दुहिए भवइ ? हंता गोयमा ! जीवेणं गभगए समाणे जाव दुहियाए दुहिए भवइ ॥ २१ ॥ अहेणं पसवण काल समयंसि सीसेणवा, पाएहिंवा आगच्छइ, सममागच्छइ, तिरिय मागजीव किस प्रकार गर्भ में रहता है और गर्भ से नीकले पीछे करणी के फल किस तरह प्राप्त करता है वह बतलाते हैं. अहो भगवन् ! गर्भ में रहा हुवा जीव क्या उत्तान - छत्राकार रहता है, एक पसली की, तरह पड़ा रहता है, आम्र फल की तरह उत्कट आसनसे रहता है, ऊर्ध्व स्थान बैठा रहता है, खडा होता है, बैठाहोता है, शयन करता है, जब उस की माना शयन करती है तब सोता है, माता जगती है तब जागृत होता है,माता सुखी तो वह मुखी रहता है, और माता दुःखी रहनेपर क्य दुःखी रहता है? हां गौतम ! गर्भ में रहनेवाले जीव को उक्त सब क्रियाओं होती हैं. ॥ २१ ॥ अब जब प्रसवन काल | 4848 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) मूत्र 4882 Arwwwmnnnnnnnn 88.. पहिला शतकका सातवा उद्दशा 88
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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