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________________ शब्दार्थ) भावार्थ अनुवादक बालब्रह्मचारी पुनि श्री अमोलक ऋपीजी म० महापद्म को अ० अन्यदा क० कदापि दो० दो देव म० महर्द्धिक जा० यावत् म० महासुखवाले से सेनाकर्म का करेंगे तं० वह ज० जैसे पु० पूर्णभद्र मा० माणिभद्र ॥ १६७ ॥ त० तब स० शतद्वार न नगर में ब० बहुत रा० राजेश्वर त० तलवर जा० यावत् स० सार्थवाह प० प्रभृति अ० परस्पर सं० बोलावेंगे स० बोलाकर ए० ऐसा व० बोलेंगे ज० जिस से दे० देवानुप्रिय अ० अपने म० महापद्म र० राजाः को दो दो दे० देव म० महर्द्धिक जा० यावत् से० सेनाकर्म क० करते हैं त० तद्यथा पु० पूर्णचंद्र मा० माणभद्र त० इसलिये हो० होओ दे० देवानुप्रिय अ० हमारे म० महापद्मराजांका दो दूसरा णा० नाम रण्णो अण्णयाकयाइं दो देवा महिड्डिया जाव महेसक्खा सेणाकम्मं कार्हिति तंजहा पुण्णभद्देय माणिभद्देय ॥ १६७ ॥ तएणं सतदुवारे णयरे बहवे सत्थवाहप्पभितीओ अण्णमण्णं सदावेहिंति, सदावेहिंतित्ता एवं राईसरतलवर जात्र वदेहिंति जम्हाणं . देवाणुप्पिया ! अम्हं महापउमस्स रण्णो दो देवा महिड्डिया जाव सेणाकम्मं करेंति "तजहा पुण्णभद्देय, माणिभद्देय, तं होऊणं देवाणुपिया ! अम्हं महापउमस्स रण्णो { सेना कर्म करेंगे || १६७ || फरि शतद्वार नगर में बहुत राजेश्वर, तलवर यावत् सार्थवाह परस्पर बोलावेंगे और बोलाकर ऐसा बोलेंगे कि अहो देवानुप्रिय ! जब अपने महापद्म राजा को पूर्णभद्र व माणभद्र ऐसे साशक- राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * | २१३८
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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