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शब्दार्थ
पंचमान विवाह पंणत्ति (भगवती) मंत्र
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काल के मा० अवसर में का० कालकर उ० ऊर्ब चं० चंद्र सू० मूर्य जा० यावत् आ० आणत पा० माणत क०. देवलोक वी० उलंघ कर अ० अच्युत क° देवलोक में दे० देवतापने उ० उत्पन्न हुवा त०% वहां अ० कितनेक दे० देवता की वाचावीस सा० सागरोपम की ठि० स्थिति प० प्ररूपी त० वहां मु० मुनक्षत्र दे० देव की वा० बावीस मा० सागरोपम की से० शेष ज. जैसे स• सर्वानुभूति जा. यावत् अंह अंतकरेंगे ॥ १६० ॥ ए. ऐने द. देवानुप्रियका अं० अंतेवामी कु. कुशिष्य गो० गाशाला मं. मंखली पुत्र से वह भ० भगवन् का० काल के अवसर में का० काल करके क. कहां ग० गया क. कहां उ08
समाहिपत्ते कालमासे कालंकिच्चा उड्डूं चंदिम सूरिय जाव आणयपाणयारणकप्पे वीई वइत्ता अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववण्णे तत्थणं अत्थेगइयाणं देवाणं बावीस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता, तत्थणं सुणक्खत्तस्सवि देवस्स वावीस सागरीवमाई, सेसं जहा सव्वाणुभइस्स जाव अंतं काहिति ॥ १६० ॥ एवं खलु देवाणुपिण्याणं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले णामं मंखालपुत्ते सेणं भंते !
गोसाले मंखलिपुत्ते कालमासे कालंकिच्चा कहिंगए कहिं उववण्णे ? एवं खलु उल्लंघकर अच्युत देवलोक में देवतापने उत्पन्न हुए. वहां पर कितनेक देवताओं की बावीम मागरोपमकी स्थिति कही जिस में मुनक्षत्र देवकी भी बावीस सागरोपम की स्थिति कही. शेष सब सर्वानुभूति अन-100 मार जैसे यावत् अंत करेंगे ॥ १६० ॥ अहो भगवन् ! आप का अंतेवासी कुशिष्य मंखली पुत्र गोशाला
4b87 पनरहवा शतक
भावार्थ
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