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शब्दार्थ
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अनुवादक-बालब्रह्मचारीमान श्री अमोलक ऋषिजी.
भगवन् त तब गोशाला मं• मंखलीपुत्र के त तपतेज से प. पीडित का. काल के अवसर में का। काल कर के क. कहां ग• गये क. कहां उ० उत्पन्न हुए ए. ऐसे गो० गौतम म मेरा अं० शिष्य म. मुनक्षत्र णा नामक अ० अनगार प० प्रकृति भद्रिक जा० यावत् वि. विनीत से यह त. उस ममय गो० गोशाला मं० मंखली पुत्र के त० तपतेज प० पिडित जे० जहां म. मेरी अं०पास ते. वहां (उ० आकर वं. वंदनाकर ण. नमस्कार कर म० स्वयमेव पं० पांच म. महाव्रत आ० आचरकर स. साधु स० साध्वी को खा० खमाकर आ° आलोचना प० प्रनिक्रमणवाला स० समाधि सहित का
तवेणं तेएणं परिताविए समाणे कालमासे कालांकच्चा कहिंगए कहिं उबवणे? एवंखल है गोयमा ! ममं अंतेवासी सुणक्खत्ते णामं अणगारे पगइभदए जाव विणीए सेणं
तदा गोसालेणं मंखलिपुत्तणं तबेणं तेएणं परिताविए ममाणे जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छइ. उवागच्छइत्ता वंदइ णमसइ, वंदइत्ता णमंमइत्ता सयमेव पंचमह..
व्ययाई आरुहइ आरुहइत्ता समणाओ समणीआय खामइ. आलाइय पडिकते गोशाला मे दुःखित कराये हवे काल के अवसर में काल करके कहां गये कहां उत्पन्न हुए ? अहो गोतम ! मेरा अंतेवासी मुनक्षत्र अनगार मंखली पुत्र गोशाला से परितापित हुआ मेरी पास आया और मुझे बंदना नमस्कार कर स्वयमेव पांच महाव्रत की आराधना कर साधु साध्वी को खमाकर आलोचना प्रतिक्रमण सहित काल के अवसर में काल करके चंद्र सूर्य की ऊंचे यावत् आणत प्राणत व आरण देवलोक को
काशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी *
भावार्थ