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________________ शब्दार्थ आहार आ० करते वि० विपुल गे० रोगातंक खि० शीघू उ० उपशांत हुवा हरु हृष्ट जा० हुने आ० आरोग्य व बलिष्ट शरीर वाले तु० संतुष्ट हुवे स० साधु तु. संतुष्ट हुई स० साधियों सा० श्राविकाओं दे देवता दे० देवियों स० देवसहित म० मनुष्य अ० असुर लोक ह. हृष्ट हुवा स० श्रमण भ० भगवंत म०महावीर १० हृष्ट ॥ १५८ ॥ भं० भगवन् ! भ० भगवंत गो० गौतम स० श्रमण भ० भगवंत म० महावीर को 40366 वंदनाकर ण नमस्कारकर ए. ऐसा व० वोल ए. ऐसे दे. देवानप्रिय के अं० शिष्य प० पूर्वदिशा के तएणं समणस्स भगवओ महारीरस्स तमाहारं आहारियस्स समाणस्स विपुले रोगायंके खिप्पामेव उवसंते, हट्टे जाए आरोग्गे वलियसरीरे, तुट्रासमणा तुट्रीओ समणीओ, तुट्ठा सावया तुट्ठीओ सावियाओ,तुट्ठा देवा, तुट्ठीओ देवीओ सदेवमणुयासुरेलोएहढे जाए समणे भगवं महावीरे हटे २ ॥१५८॥ भंतेत्ति ! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीर वंदइ णमंसइ, वंदइत्ता णमंसइत्ता एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी . भावार्थको ऐमा आहार करते शीघ्र ही उस रोग का उपशम होगया और व हृष्ट यावत् आरोग्य के बलवंत बने. माधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका, देव व देवियों तुष्ट हुइ, देव, मनुष्य व असुर लोक के सब जीव आनंदित ISTRकि श्रमण भगवंत हृष्ट हुए ॥ १५८. ॥ भगवान् गौतम श्रमण भगवंत को वंदना नमस्कार ऐसा बोले कि अहो भगवन् ! पूर्व देश के रहनेवाले आपके अंतेवासी. प्रकृति भद्रिक याक्त् निीत सर्वानुभूति अन-1 PA पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र +8+ 34 पनरहवा शतक 8 4
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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