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शब्दार्थ ० रेवती गा० गाथापतिनी सी सिंह अ० अनगार को ए. ऐसा क. बोली के. कौन सी० सिंह सेवा
णा० ज्ञानी त० तपस्वी जे• जिस से त० तेरा ५० यह अ० अर्थ म० मेरे र० रहस्यकृत अ कहा जा जिस से तु. तुम जा. जानतहो एक ऐसे ज. जैसे खं० स्कंदक जा. यावत ज. जिस से अ० मैं जा जानताएं ॥ १५२ ॥ त० तव सा. वह रे० रेवती गा० गाथापतिनी सी० सिंह अ. अनगार की अं0 पास से ए. यह आ० वात सो० सुनकर णि• अवधारकर ह० हृष्ट तु. तुष्ट जे० जहाँ भ० भोजन गृह
अणगारं एवं वयासी-केसणं सीहा से णाणीवा तवस्सीवा जेणं तव एस अट्टे मम ताव रहस्सकए हव्व मक्लाए ? जओणं तुम जाणासि ? एवं जहा खंदए जाव जओणं अहं जाणामि ॥ १५२ ॥ तएणं सा रेवती गाहावड़णी सीहस्स अणगारस्स
अंतियं एयमटुं सोचा णिसम्म हट्ट तुट्ठा, जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छनिमित्त जो कोलापाक बनाया है उसे लेने को मैं आया हूं ॥ १५१ ॥ उस समय गाथापति की पनि । रेवती बोली कि अहो मीहा ! एमा कौन ज्ञानी व तपस्वी है कि जिनोंने तुम को मेरा ऐसा गुप्त कार्य
कहा कि जिस से तुम जानते हो ? वगैरह स्कंधक जैसे सब कहना यावत् मैं जानता हूं ॥ १५२ ॥ | सीहा अनगार की पास से ऐसा सुनकर गायापति की स्त्री रेक्ती हट तुष्ट हुइ और भोजन गृह की पास
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ