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________________ Here शब्दार्थ नमस्कार कर ए० ऐसे घ० बोली सं० कहो दे० देवानप्रिय कि० क्या आ० आने का प्रयोजन त तब से वह सी० सिंह अ० अन्गार रे० रेवती गा० गाथापतिनीको ए. ऐसा व० बोले ए. ऐसे तु तुमने दे० देवानुप्रिये स• श्रमण भ० भगवंत म० महावीर कलिये दु० दो क० कपोत स. शरीर । तैयार किये ते • उस से णो० नहीं अ० मतलब अं० है ते. उन अ० अन्य ५० भूतकाल में म० माओर कृत कु० कुर्केटमांस तं० उसे आ० लावो ते. उस से अ० प्रयोजन ॥ १५० ॥ त० तव सा. वह रे०/ णाओ अब्भुढेइ २ त्ता सीहं अणगारं सत्तट्ट पयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छइत्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं वंदइ णमंसइ.वं. २ त्ता, एवं वयासी संदिसंतुणं देवाणुप्पिया ! किमागमणप्पयोयणं ? तएणं से सीहे अणगारे रेवति गाहावणिं एवं वयासी एवं खलु तुम्हे देवाणुप्पिए ! समणस्स भगवओ महावीरस्स अट्राए दुवें - कवोयसरीरा उवक्खाडया तेहिं णो अट्ठो, अत्थि ते अण्णे पारियासिए मज्जारकडए । कुक्कुडमंसए तमा हराहि तेणं अट्ठो ॥ १५ ॥ तएणं सा रेवती गाहावरणी. सीहं. भावार्थ ऐसा बोली कि अहो देवानुप्रिय ! आपका आने का क्या प्रयोजन है ? तब सीहा अनगार रेवती गांधा 06 पति की पत्नि को ऐसा बोले कि अहो देवानुप्रिय ! तुमने श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी के लिये 1 दो कपोत शरीर (बीजोरे ) बनाये हैं. उस से मुझे मतलब नहीं है, परंतु वायु का उपशमके लिये अन्य के 488 पंचमाज विवाह पण्णाने (भगवती ) मूत्र +8+ immmmmmmmmmmmmmmmmmmommemomen पथरहवा शतक""
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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