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शब्दार्थ
घालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी "
रहित म मख वस्त्रि का प० प्रतिलख कर ज० जैसे मो० गौतम स्वामी जा. यावत् .. जहां स. श्रमण भ• भगवंत म० महावीर तं. वहां उ० आकर रे रेवती गा० गाथापतिजी के गि०गृह में अ० प्रवेश किया शेष सरल ॥ १५० ॥ त० तब से वह र रेवती मा० गायापनिनी सी सिंह अ० अन्गार को ए. आताहुवा पा० देखकर ह० हृष्टतुष्ट खि० शीघू आ० आसन से अ० खडीहुइ सी० सिंह अ० अनगार की स० सात आठ प० पांव अ० सन्मुखगइ ति० तीनवार आ० आवर्त ५० प्रदक्षिणा 40 वंदनाकर .
स्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ सालकोट्ठयाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमइत्ता अतुरिय जाव जेणेव मिढियगामे गयरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छइत्ता रेवई गाहावइणीए गिहे अणुप्पविढे ॥ १५० । तएणं सा
रेवई गाहावइणी सीहं अणगारं एजमाणं यासइ, पासइत्ता हट्टतुट्ठ खिप्पामेव आसभावंत को वंदना नमस्कार कर शीघूता व चपलता रहित मुखपति की प्रतिलेखना कर गौतम स्वामी जैसेश्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास आये और वंदना नमस्कार कर शालकोष्टक उद्यान में से नीकलकर शीघ्रता व चपलता रहित मिढिक ग्राम नगर में रेवती गाथापतिनी के गृह आये और उस में प्रवेश किया ।। १५० ॥ रेवती गायापतिनी मीहा अनगार को आते हुए देखकर हृष्ट तुष्ट यावत् आनंदित हुइ और सीहा अनगार की सन्मुख सात आठ पांव गइ. तीन बार हस्त जोडकर बंदना नमस्कार कर
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदव हायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ