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________________ शब्दार्थ पंचमांग विवाह पण्णचि ( भगवती ) सूत्र +8+ 4 आ० लाव ते उससे अ० प्रयोजन ॥ १४॥ त० तब सी० सिंह अ० अनगार म श्रमण भ० भगवंत 41 म.महावीर से एक ऐसा वु. कहाया हुवा ह० हृष्टतुष्ट जा. यावत् हि आनंदित म० श्रमण भ० भगवंत म. महावीर को वं० वंदना कर ण नमस्कार कर अ० स्वरारहित अ० चपलता रहित अ० संभ्रांत - कडए कुक्कडमसए तमाहराहि, तेणं अट्ठो ॥ १४९ ॥ तएणं' सीहे अणगारे १ __समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठ तुढे जाव हियए समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, व. २ अतुरिय मचवल. मसंभंतं मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, पडिलेहेइत्ता जाव गोयम सामी जावं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवाग च्छइ, उवागच्छइत्ता समगं भगवं महावीर वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता समणलिये मार्जार (वायु विशेष ) को उपशमाने के लिये कुक्कुड मांस बनाया है उसे लाना + १॥ १४९ ॥ जब महावीर स्वामीने ऐसा कहा तब सीहा अनगार हृष्ट तुष्ट यावत् आनंदित हुए. और श्रमण + यहां पर कपोत का अर्थ कपोत जैसे आकारवाले विजोरे का फल जानना. क्यों कि वर्ण स्वधर्मपना से इसे. - ग्रहण किया है. और कुक्कुड मांस का अर्थ कोले का गिर जानना. मार्जारका कितनेक वायुविशेष अर्थ करते हैं उसका or . उपशम के लिये बनाया हुवा; और कितनेक मार्जार एक वनस्पति विशेष मानते हैं इसलिये इस वनस्पति विशेष से बनाया हुवा. 4843 पमरहवा शतक + भावार्थ - 4. + -
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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