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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
+9 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
गो० गोशाला मं० खलीपुत्र के त० तपतेन से अः पराभव पाया अं अंदर छ छपास के जा० यावत् का० काल क० करूंगा अ० मैं अ० अन्य सो०सोलह वा० वर्ष जि०जिन सु० सुखार्थी वि० विचरूंगा ॥ १४८ ॥ तं इसलिये ग० जा ० तु सी० सिंह मिंटिक ग्राम ण० नगर में रे० रेवती गा० गाथापति की पत्नि के गिः गृह त० वहां रे० रेवती गा० गाधापतिनी ने म० मेरेलिये दु० दो क० कपोत (( वनस्पति विशेष ) उ० बनाया ते० उस से णो० नहीं अः प्रयोजन अ० है अ० अन्य पा० भूतकाल का म० मार्जर ( वनस्पति विशेष अथवा वात विशेष ) कु० कुर्कुटमांस ( वनस्पति विशेष ) त० उसे गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएणं अणाइट्ठे समाणे अंतो छण्हमासाणं जाब कालं `करेस्सं अहंण अण्णाई सोलसवासाई जिगसुहत्थी विहरिस्सामि ॥ १४८ ॥ तं गच्छहणं तुमं सीहा मिंढिय गामं यरं रेवती गाहावइणीए गिहे, तत्थणं रेवतीए गाहावईए मम अट्ठाए दुवे कसरी उवक्खडिया तेहिं णो अट्ठो अत्थि ॥ से अण्णे पारियासि मज्जार पाया हुवा मैं छ मास में यावत् काल नहीं करूंगा परंतु सोलह वर्ष पर्यंत जिन बनकर विचरूंगा || १४८ ॥ अडो सीहा ! तू मिंटिय ग्राप नगर में रेवती गाथापतिनी के गृह पर रेवती गाथापतिनीने दो कपोत शरीर मेरे लिये बनाये हैं; इस का यहां मतलब नहीं है अर्थात वह मत लाना. परंतु जो अन्य के
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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