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शब्दार्थ
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
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महावीर से एक ऐसा वु० कहाये हुवे स० श्रमण भ० भगवंत म. महावीर को व. वंदनाकर ण नमस्कार कर स० श्रमण भ. भगवंत म० महावीर की अं० पास के सा० शालकोष्टक चे. उद्यान में से १० नीकलकर जे० जहां मा० मालुया कच्छ जे. जहां भी सिंह अ० अनगार ते. वहां उ० आकर सी० सिंह अ० अन्गार को एक ऐसा व० बोले सीनिहत. तुझे ध० धर्माचार्य सः बोलाते हैं ॥१ त० तब सी० सिंह अ• अनगार स० श्रमण णि निर्ग्रन्थों की स० साथ मा० मालुका क. कच्छ में
समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्तासमाणा समणं भगवं महावीरं बंदंति णमं संति वं० २ त्ता समणस्त भगवओ महावीरस्स अंतियाओ सालकोट्रयाओ चेइ. याओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमंतित्ता जेणेव मालुया कच्छए जेणेव सीहे अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता सीह अणगार एवं क्यासी सीहा ! तव धम्मायरिया सद्दावेइ ॥ १४५ ॥ तएणं सीहे अणगारे समणेहिं णिग्गंथेहिं सद्धिं
मालुया कच्छयाओ पडिणिक्खमइ, पडिगिक्खमइत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे श्रमण निग्रंथ महावीर स्वामी की पास कोष्टक उद्यान में से नीकलकर मालुया कच्छ में सीहा अनगारकी पास गये. और उन को बोले अहो सीहा ! तुझे धर्माचार्य धर्मोपदेशक . बोलाते हैं ॥ १४५ ॥ उस समय में सीहा अनगार श्रमण निग्रंथों की साथ मालुया कच्छ में मे नीकलकर श्रमण भगवंत महाबीर
प्रकाशक राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.*
भावार्थ