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शब्दार्थ
सूत्र
भावाथ
48 पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
अ० पेठे अ० पैठकर म० बडे २ स० शब्द से कु० कुहु प० रुदन किया || १४३ ॥ आ० आर्य स० श्रमण भ० भगवंत म० महावीर स० भ्रमण णि० निर्ग्रन्थ को आ० आमंत्रण कर ए० ऐसा व० बोले ए० ऐसा अ० आर्य म० मेरा अं० शिष्य सी० सिंह अ० अनगार प० प्रकृति भद्रिक त० तैसे सः सब भा० कहना जा० यावत् १० रुदन किया तं० इसलिये ग० जाओ अ० आर्य तु तुम सी० सिंह अ० { अनगार को अ० वोलावो ।। १४४ ॥ त० तत्र ते० वे स० श्रमण णि निर्ग्रन्थ स० श्रमण भ० भगवंत म०
विसइत्ता, महया महया संदेणं कुहुकुहुस्स परुणे ॥ १४३ ॥ अजोति, समणे भगवं महावीरे समणे णिग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी एवं खलु अज्जो ! ममं अंतेवासी सीहे णामं अणगारे पगइभदए तंचेव सव्वं भाणियव्वं जात्र परुण्णे तं गच्छहणं अज्जो ! तुब्भे सीहं अणगारं सद्दह ॥ १४४ ॥ तएणं ते समणा णिग्गंथा
नीकलकर मालुका कच्छ में आये. वहां प्रवेश किया और बडे २ शब्द से रुदन करने लगे ॥ १४३ ॥ श्रमण भगवंत महावीरने श्रमण निर्ग्रयों को बोलाकर ऐसा कहा कि अहो आर्यो ! मेरा अंतेवासी प्रकृति भद्रिक यावत् प्रकृति विनीत मीहा अनगार मालुया कच्छ में यावत् रुदन कर रहा है इसलिये अहो आर्यो ! तुम जाओ और सीहा अनगार को बोलावो ॥ १४४ ॥ महावीर स्वामी के ऐसा कहने पर
++++ पनरहवा शतक 44
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