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________________ शब्दा mming. 48. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी *यह एक ऐसा जा० यावत् स० उत्पन्न हुवा ए. ऐसे म० मेरे ध० धर्माचार्य ध० धर्मोपदेशक स. श्रमण: भ० भगवंत म. महावीर के स० शरीर में वि० विपुल रो० रोगांतक पा. हुवा उ० उज्वल जा. यावत् छ० छमस्थ में का. काल क० करेंगे ब. बोलेंगे अ. अन्य तीथिक छ० छद्मस्थ में का. काल किया |२११८ इ. इस एक ऐसा म० घडा म. मन का मा० मानसिक दु० दुःख से अ० पराभूत आ. आतापना भू. भूमि से १० आकर जे. जहां मा० मालुया कच्छ ते. वहां उ० आकर मा० मालुयाकच्छ में अं• अंदर एवं खलु मम धम्मायरियस्स धम्मोवएसगस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स सरीरगंसि विउले रोगायके पाउन्भूए उज्जले जाव छउमत्थेचत्र काल करेस्सइ ॥ वदिस्संति यणं अण्णउत्थिया छउमत्थचव कालगए। इमेणं एयारवेणं महया मणो माण. सिएणं दुक्खणं अभिभूएसमाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुभइ पच्चोरुभइत्ता जेणेव मालुयाकच्छए, तेणेव उवागच्छइ २ त्ता मालुयाकच्छयं अंतो २ अणुप्पविसइ, अणुप्प. उस सीहा अनगार को ध्यान करते २ ऐसा अध्यवमाय उत्पन्न हुवा कि मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक के शरीर में विपुल रोग उत्पन्न हुवा है यावत् छ अस्थपना में ही काल करेंगे. और अन्यतीथिक कहेंगे कि छमस्थ में काल कर गये. इस तरह मन में मानसिक दुःख से पराभव पाये हुवे आतापना भूमि में से प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी. भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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