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शब्दार्थ तपतेज से अ० पराभव पाया हुवा अं• अंदर छ० छमास में पि० पित्तज्वर १० परिगत शरीरवाला दा०
दाह व्युत्क्रान्त छ• छमस्थ में का• काल का करेंगे ॥ १४१ ॥ ते• उस काल ते. उस समय में म० श्रमण भ० भगवंत ५० महावीर के अं० शिष्य सी० सिंह अ० अनगार १० प्रकृति भद्रिक जा० यावत् वि० विनीत मा० मालुया कच्छ की अ० पास छ० छह के अ० निरंतर उ० ऊर्ध्व बा० थाहा से जा • यावत् वि. विचरताथा त० तब तक उस सी सिंह अ० अनगार को झा० ध्यान में व० रहते अ.
समाणे अंतो छण्हं मासाणं पित्तजरपरिगय सरीरे दाहवकंतीए छउमत्थेचेव कालं करेस्संति ॥ १४१॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सीहे णामं अणगारे पगइभदए जाब विणीए मालुयाकच्छगस्स अदूर सामंते छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तणं २ उर्दू बाहाओ जाव विहरइ ॥ १४२ ॥ तएणं
तस्स सीहस्स अणगारस्स झाणंतरियाए वमाणस्स अयमेयारूचे जाव समुप्पज्जित्था भावार्थ मल भी करने लगे. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र ये चारों वर्ण ऐसा बोलने लगे कि मखलीपुत्र गोशा
ला के तप तेजसे पराभव पाये हुवे महावीर स्वामी पित्तचर व दाहसे छ मासमें काल करेंगे।।१४१|उस काल : २७ उस समय में श्री श्रमण भगवंत महावीर के अंतेवासी प्रकृति भद्रिक यावत् प्रकृति विनित मीहा नामक 1/अनगार मालुयाकच्छ की पास निरंतर नरकी तपस्या करते हुवे ऊर्भ बाहा यावत् विचरते थे ॥१४२॥
पंचमान विवाह पण्णाचे ( भगवती ) सूत्र 48
पनरहवा शतक 48