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शब्दार्थ 4 कैसे गो. गौतम स० संज्ञी पं० पंचेन्द्रिय स मर्व प० पर्याप्ति से १० पर्याप्त त. तथारूप सः श्रमण
ईमा माहण की अं0 पाम ए. एक आ० आर्य ध• धर्म का सु० अच्छा वचन सो० सुनकर नि० अवधारकर त० पीछे भ होवे सं० वैराग्य से उ• उत्पन्न स० श्रद्धा ति० तीत्र ध० धर्मानुराग २० रक्त जी० जीव ध० धर्म का कामी पु. पन्य का कामी स. स्वर्ग का कामी मो. मोक्षका कामी ध. धर्म
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) सूत्र womanा
१ वजेजा, अत्थेगइए णो उववजेज्जा । सेकेणटेणं ? गोयमा ! सेणं सण्णी पंचिंदिए
सव्वाहिं पजत्तीहिं पजत्तए तहास्वरस समणस्सवा, माहणस्सवा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोचा, निसम्म तओ भवइ संवेगजायसढे तिव्वधम्माणुराग
रत्ते, सेणं जीवे धम्मकामए, पुण्णकामए, सग्गकामए, मोक्खकामए; धम्मकंखिए, भावार्थ ईकितनेक जीव देवलोक में नहीं उत्पन्न होते हैं. अहो भगवन् ! किस कारन से कितनेक जीव देवलोक में है
उत्पन्न होते हैं और कितनेक जीव देवलोक में नहीं उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! कोई जीव धर्मिष्ट { 0 स्त्री की कुक्षि में संज्ञी पंचेन्द्रियपने उत्पन्न हुवा. वहां पूर्ण पर्याय बांधकर पर्याप्त हुवे पीछे तथारूप श्रमण
माहण की पास एकान्त आर्य धार्मिक वचन श्रवण कर, अवधारकर संवेग से धर्मादि में श्रद्धावन्त हुवा व 10 तीन धर्मानुराग से रक्त वनगया. फीर वह श्रुत चारित्र रूप धर्म का अभिलाषी बनाहुवा, पुण्य का
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती
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3. पहिला शतक का सातवा उद्देशा 89480