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________________ सत्र भावार्थ १०३ अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी अर्धयुक्त अ रहावा करण भ० भावना मं० भावता ए० इन अं० अंतर में का काल कर करें ने० नरक में उ० उत्पन्न होवे से० यह ते? इस लिये गो० गौतम जा० यावत् अ० कितनेक नो० उ० उत्पन्न होवे ॥ १९ ॥ जी० जीव भ० भगवन् ग गर्भ में ग० रहाहुवा दे० देवलोक में उ० उत्पन्न होवे गो० गौतम अ० कितनेक उ० उपलन होवे अ० कितनेक नो० नहीं उ० उत्पन्न होवे से० वह के० नहीं कंखिए, अत्थ पिवासिए, रज्जपिवासिए भोगपिवासिए काम तम्मणे, तल्लेस्ते, तदज्झसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते, तदभावणा भाविए एयंसिणं अतरंसि कालं करेजा नेरइएसु तेणट्टेणं गोयमा ! जाव अत्थेगइए नो उववजेज्जा ! १९ ॥ जीवेणं भंते ! समाणे देवलोगेसु उबवजेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए उब पिवासिए, तच्चित्ते, तदप्पिय करणे उववजइ । से गब्भगए बनाहुत्रा, तीन अशुद्ध लेश्या से ध्यानयुक्त, काम भोगों की भावना भावता हुवा व करण करावण व अनु(मोदन रूप अध्यवसाय की प्रबलता करता हुवा वह जीव यदि उसी समय काल कर जावे अर्थात् आयुष्य पूर्ण कर के चत्रे तो वह नरक गतिम उत्पन्न होवे इसलिये अहो गौतम! कितनेक जीव नरक में उत्पन्न होते हैं। और कितनेक नहीं होते हैं ॥ १२ ॥ अहो भगवन् ! गर्भ में रहा हुवा जीव यादे आयुष्य पूर्ण कर जाये तो क्या देवलोक में उत्पन्न होता है ? अ गौतम ! कितनेक जीव देवलोक में उत्पन्न होते हैं और * प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी १८४
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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