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शब्दार्थ
31 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 88
चा. चतुरंगी से० मैन्य वि० विकु वि०विकुर्व कर चा० चतुरंगी से• सैन्य से ५०शचु शैन्य की स०साथ सं. संग्राम सं० संग्राम करे से वह जी. जीव अ० अर्थ का इच्छक र० राज्य का इच्छक भो० भोग की इच्छा वाला का० काम की इच्छा वाला अ०अर्थ की कांक्षा वाला र०राज्यकी कांक्षा वाला भोग भोगकी कांक्षा वाला का काम की कांक्षावाला अ०अर्थ पिपासु र राज्य पिपासु भो भोग पिपासु का काम पिपासु त.उसमें चित्त बाला म. मन वाला ले. लेश्या वाला अ० अध्यवसाय वाला तितीव्र आरंभ वाला अ०
च्छुभइ,वेउन्विय समुग्धाएणं समोहणइ,समोहणइए चाउरंगिणीए सेणाए विउव्वइ, विउव्य । इत्ता चाउरंगिणीए सेणाए पराणीएणं सद्धिंसंगामं संगामेइ, सेणं जीवे अत्थ कामए,
रज्जकामए, भोग कामए, कामकामए, अत्थकंखिए, रजकंखिए, भोगकखिए, काम वह गर्भस्थ जीव ऐसी बात सुने की परचक्री की सेना आई है और अपन को दुःखी करेगी. ऐसी बात सुनकर, अवधारकर जीव के प्रदेश गर्भ की बाहिर नीकाले और वैक्रेय ममुद्घात से तथाविध पुद्गलों को ग्रहण कर हाथी, घोडे, रथ, पायदल वगैरह सेना की विकुवर्णा करे, विकुर्वणा करके परचक्री की सेना साथ संग्राम करे. ट्रव्य की अभिलाषावाला राज्यऋद्धि की अभिलाषावाला, गंधरम स्पर्शरूप भोग 26 की अभिलाषावाला, शब्द रूपादि कामकी अभिलाषावाला, धन की इच्छा से आसक्त बनाहुवा, राज्य, भोग, व काम की इच्छा से आसक्त बना हुवा. धन, राज्य, भोग व काम का पिपासु, [अतृप्त, तन्मय
२०१8०342 पहिला शतक का सातवा उद्देशा 4248
भावार्थ