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शब्दाय
पंचाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र ११
हो० था व० वर्णन योग्य. पु. पृथ्वी शिलापट्ट त० उस सा० शाल कोष्टक चे० उद्यान की अ० पास} . ए. यहां- म. बडा मा० मालुय कच्छ हो० था किः कृष्ण कि० कृष्णावभास जा. यावत् नि००% निकुरुंबभून प. पत्रवाले पु० पुष्पवाले फ. फलवाले ४० हरे रि• शोभायमान सि. लक्ष्मी से अ० अतीव उ. शोभते हवे वि० था ॥ १३८ ॥ त उस में मिदिक ग्राम ण. नगर में रे० रेवती गाई गाथापति की स्त्री प० रहनीथी अ० ऋद्धिवंत जा० यावत् अ. अपरिभूता ॥ १३९ ॥ त० तब
सालकोट्ठए चेइए होत्था, वण्णओ. पुढवीसिलापट्टओ तस्सणं सालकोटगरस । चेइयस्स अदूरसामंते एत्थणं महेगे मालुयाकच्छएयावि होत्था किण्हे किण्होभासे जाव निकुरुवभूए पत्तिए पुल्फिए फलिए हरियगरेरिजमाणे सिरीए अईव २ उवसोभेमाणे २ चिट्ठइ ॥ १३.८ ॥ तत्थणं मेंढियगामे णयरे वेतीणाम गाहावइणी - परिवसइ, अट्ठा जाव अपरिभूया ॥ १३९ ॥ तएणं समणे भगवं महावीरे अण्ण्या कौन में शाल कोष्टक नाम का उद्यान था. वह वर्णन युक्त था. वहां पर पृथ्वीशिलापट्ट था. उस शाल-14
एक उद्यान की पास मालुका नामक कच्छ (वृक्षों का समुह) था, वह कृष्ण, कृष्णावभास यावत् है निकरुवभूत पत्र, पुष्प, फल और हरित से अतीव शोभता हुवा था ॥ १३८॥ उस मिढिक ग्राम नगर में रेवती नामक गाथापतिनी रहती थी. वह ऋद्धिवंत यावत् अपरिभूता थी ॥ १३९ ॥ अब एकदा श्री,
पचरहवा शतक
भावार्थ