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शब्दार्थ में गो गोशाला में पंखलीयंत्र के मशीर का णी निहारन क० किया ॥ १६७ ॥ त तब २०
श्रमण भ. भगतमा महावार अ० अन्यदा कदापि सा० श्रावस्ती ण नगरी से को० कोष्टक चे उद्यान में से प० नीकरकर व वाहिर ज. जनपद में विचरने लगे ॥ १३८ ॥ ते. उस का? काल है उन स समय में शिपिढिक ग्राम. ण नगर हो० था व० वर्णन योग्य त उस मि. मिढिक ग्राम णनगर की ३० बाहिर उ० ईशान कौन में ए. यहां मा. शाल को. कोष्टक चे. उद्यान
जाव महया महया इट्ठीमकार समुदएणं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगस्स णीहरण करेंति ॥ १३७ ॥ तएणं समणे भगवं महावीर अण्णयाकयाई सावत्थीओ. णयरीओ कोट्टयाओ चइयाआ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमइत्ता वाहिया जणवयविहारं विहग्इ ॥ १३८ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं मिंढियगाम णामं णयरे होत्था, वण्ण
ओ तस्सणं मिढियगामस्स णयरस्स बाहथा उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए एत्थणं भावार्थम्नान कराया यावत् बहुत २ ऋद्धि मत्कार समुदाय से मेखली पुत्र गोशाला के शरीर का निहारन किया
॥१३७ ॥ उम समय में श्रमण भगवंन महावीर स्वामी अन्यदा कदापि श्रावस्ती नगरी के कोष्टक उद्यान में से नीकलकर बाहिर जनपद विहार विचरने लगे ॥ १३८ ॥ उस काल उस समय में मिदिक ग्राम नामक नगर था. उस का वर्णन चंपा नगरी जैसे जानना. उस मिदिक ग्राम नगर की बाहिर ईशान
40 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी !
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रमादजी *