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शब्दार्थ प्रिय गो गोशाला पं० पखली पुत्र जि० जिन जि० जिन प्रलापी आ० यावत् वि. विचरने को ए. यह
गो० गोशाला में मंखलीपुत्र स० माधु का घातक जा: यावत् छ० छमस्थ में का० कालगत स० Vश्रमण भ• भगवंत म० महावीर जि० जिन नि० जिन पालापी जा० यावत् वि. विचरते हैं स० शपथ से | २११३
4. छूटने का क० करके दो० दूसरी वक्त पू० पूजा स० सत्कार थि• स्थिर क० करने को गो०१७ मोशाला में० मेखलीपुत्र को बा० बाये पांच से सु. छोडकर हाः हालाहला कुं• कुंभकारिणी की कुछ कंभकार शाला में दु. द्वारकपाट अ० खोलकर गो० गोशाला मं० मंखलीपुत्र के स. शरी सुगंधित गं० गंधोदक से ण्हा स्नान कराया तं० वैसे ही म० बडी इ० ऋद्धि स० सत्कार स० समुदय
विहरिए । एसणं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छ उमत्थे चेत्र काल
गए ॥ समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाब विहरइ, सवहपडिमोक्ख- मणगं करेंति, करेंतित्ता, दोच्चंपि पूयासकारथिरीकरणट्टयाए गोसालस्स मंखलिपुत्तरस वामाओ पादाओ सुंवेयंति २ त्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स द्वारवयणाई
अवगुगंतिर त्ता, गोसालस्स मखलिपुत्तस्स सरीरंग सुरभिणा गंधोदएणं ण्हाणति तंचेव भावार्थ पूना सत्कार व सन्मान के लिये मंखलीपुत्र गोशाला के बांये पांच से स्स्सी छोडकर हालाहला कुंभ-15
कारिणी के कुंभकारशाला के द्वार खोल दिये. मंबली पुत्र गोशाला के शरीर को सुगंधित पानी से।
पंचमाङ्ग विवाह पण्पत्ति (भग
पनरहवा शतक
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