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शब्दार्थ,
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भावार्थ
पिचज्वर प० परिगत स० शरीर वाला दा० दाह सहित छ० छद्मस्थ में का० काल क० करूंगा स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर जिοजिन जिοजिन प्रलापी जा०यावत् जिं०जिन शब्द प०प्रकाश करते वि० विचरते हैं ॥ १३४ ॥ ए० ऐसा से० विचार करके आ० आजीविक थे० स्थविर को बोलाये स० बोला कर उ०ऊँचनीच स० शपथ प०किया ए ऐसा व०वाला णो० नहीं अ०मैं जि० जिन जि० जिन प्रलापी जाग्यावत् प०प्रकाश करता वि०विचरता हूं अ० मैं गो गोशाला मं० खली पुत्र स० श्रमण घातक जा० यावत् सरीरे दाहवांतीए छउमत्थेचेव कालं करेस्सं ॥ समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्लावी जाव जिणसद्दं पगासमाणे विहरइ ॥ १३४ ॥ एवं संपेहेइ, संपेहेइत्ता आजीवियथेरे सद्दावेइ, सहावेइत्ता उच्चावयं सवहस्सावि पकरेइ, पकरेइना एवं वयासी णो खलु अहं जिणे जिणप्पलावी जाव पगासमाणे विहरइ, अहं गोसाले खसमणघाए जाव छउमत्थे चेव कालं करेस्सं ॥ समणे भगव महावीरे करता हुवा विचर कर अपने तेज से पराभव पाया हुवा पित्तज्वर सहित शरीरवाला दाहसहित छद्मस्थपना में सात रात्रि में काल करूंगा और श्रमण भगवंत महाबीर जिनजिन प्रलापी यावत् जिन शब्द प्रका(शमान करते हुवे विचरते हैं ।। १३४ ॥ ऐसा विचार कर आजीविक स्थविरों को बोलाये और ऊंच नीच {देवगुरु संबंधी शपथ कराकर ऐसा बोला मैं जिन जिन प्रलापी नहीं हूं यावत् जिन शब्द का प्रकाश करता
48 पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 488+
पनरहवा शतक
'२१०९